52 Shaktipeeth
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52 Shaktipeeth: माँ आदिशक्ति के 52 शक्तिपीठ के नाम और कहाँ पर स्थित है

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52 Shaktipeeth : माता सती के आभूषण और रक्त के टुकड़े भू-भाग के जिस भी हिस्से में गिरे उन स्थानों को देवी शक्तिपीठ के नाम से पूजा जाता हैं। दुर्गा शप्तसती और तंत्र चुडामणि में इनकी संख्या 52 हैं। देवी भगवती पुराण में 108 शक्तिपीठों का वर्णन हैं। वहीं पर कलिका पुराण में 26 शक्तिपीठों की संख्या का उल्लेख मिलता हैं। जबकि शिवचरित्र में 51 शक्तिपीठों का वर्णन हैं। लेकिन हम आज इस लेख में माँ आदिशक्ति के 52 शक्तिपीठ के नाम क्या हैं और वह कहाँ पर स्थित है इस बारें में जानेगें, साथ ही माँ आदिशक्ति के 52 शक्तिपीठ के नाम और कहाँ पर स्थित है।

52 Shaktipeeth
52 शक्तिपीठ

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष की मर्जी के बिना ही भोले नाथ से विवाह कर लिया। इस बात के लिए राजा दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में अपनी बेटी और अपने दमांद को आमंत्रण नहीं किया, लेकिन फिर भी माता सती वहां पर पहुँच गई जबकि भोलेनाथ ने वहां जाने से माना किया था।

52 Shaktipeeth : माँ आदिशक्ति के 52 शक्तिपीठ के नाम और कहाँ पर स्थित है

राजा दक्ष ने माता सती के सामने उनके पति का अपमान करने लगे पिता के मुख से अपने पति का अपमान माता सती से बर्दाश नहीं हुआ। तो उन्होंने यज्ञ वेदी में अपने प्राणों को त्याग दिया भगवन शिव पत्नी के वियोग को न सह सके और भोलेनाथ माता सती को लेकर तांडव करने लगे।

जिस कारण ब्रम्हांड से प्रलय आने लगी भगवन विष्णु ने इस प्रलय को रोकने के लिए आपने सुदर्शन चक्र से माता सती के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। माना जाता है कि जब भागवान शिव अपनी पत्नी माता सती के मृत देह को लेकर जब कैलाश पर्वत की ओर जा रहे थे, तब जहां-जहां माता सती के शरीर के अंग, आभूषण और रक्त के टुकड़े गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। इन शक्तिपीठों की कुल संख्या 52 हैं जो आंगे जाकर 52 शक्तिपीठ बन गए।

  1. श्री पद्मावती देवी जी का मंदिर मध्य प्रदेश में वहुत प्रसिद्ध है जो पन्ना जिले में स्थित हैं।
  2. माता हिंगलाज मंदिर पाकिस्तान,
  3. माँ नयना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश,
  4. सुगंधा सुनंदा शक्तिपीठ शिकारपुर बांग्लादेश,
  5. महामाया शक्तिपीठ जम्मू कश्मीर,
  6. माँ ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश,
  7. माँ त्रिपुर मालनी मंदिर जालंधर पंजाब,
  8. माँ अम्बाजी मंदिर गुजरात,
  9. गुजयेश्रवरी मंदिर काठमांडु नेपाल,
  10. मनसा देवी शक्ति पीठ मंदिर तिब्बत,
  11. विरजा देवी मंदिर जाजपुर उड़ीसा,
  12. गण्डकी चंडी शक्तिपीठ मुक्तिनाथ नेपाल,
  13. बहुला शक्तिपीठ मंदिर केतुग्राम पश्चिम बंगाल,
  14. उज्जयिनी मांगल्य चंडिका मंदिर पश्चिम बंगाल,
  15. त्रिपुर सुन्दरी मंदिर त्रिपुरा,
  16. भवानी शक्तिपीठ चट्टल ढाका बांग्लादेश,
  17. भ्रामरी शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल,
  18. कामाख्या देवी मंदिर असम,
  19. युगाद्या भूतधात्री शक्तिपीठ क्षीरग्राम पश्चिम बंगाल,
  20. कालीघाट शक्तिपीठ कोलकाता पश्चिम-बंगाल,
  21. प्रयाग शक्तिपीठ (ललिता देवी मंदिर) उत्तरप्रदेश,
  22. जयंती मंदिर बांग्लादेश,
  23. किरीट विमला शक्तिपीठ जिसे माता मुक्तेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है मंदिर पश्चिम-बंगाल में स्थित हैं,
  24. विशालाक्षी शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश,
  25. कन्याकुमारी शक्तिपीठ तमिलनाडु,
  26. सावित्री शक्तिपीठ कुरुक्षेत्र हरियाणा,
  27. मणिबंध शक्तिपीठ अजमेर राजिस्थान,
  28. श्रीशैल शक्तिपीठ बांग्लादेश,
  29. देवागभी शक्तिपीठ पश्चिम-बंगाल,
  30. कालमाधव शक्तिपीठ मध्यप्रदेश,
  31. शोणदेश शोणाक्षी शक्तिपीठ मध्यप्रदेश,
  32. राम्मिश्वी शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश,
  33. श्री उमा शक्तिपीठ वृन्दावन उत्तरप्रदेश,
  34. शुचि नारायणी शक्तिपीठ तमिलनाडु : जहां पर माता सती के ऊपरी दांत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे।
  35. पंच सागर शक्तिपीठ वाराणसी उत्तरप्रदेश : वाराणसी के पास स्थित है जहां माता सती के निचले दांत गिरे थे।
  36. अपर्णा शक्तिपीठ बांग्लादेश : अपर्णा शक्तिपीठ एक ऐसी जगह है जहां देवी माता सती की बाईं पायल गिरी थी।
  37. माँ भ्रामराम्बा श्रीशैलम शक्ति पीठ आंध्रप्रदेश : ममता मई भ्रामरी देवी का अनोखा मंदिर आंध्रप्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाता है
  38. विभाष शक्तिपीठ पश्चिम-बंगाल,
  39. चन्द्र्भामा शक्तिपीठ गुजरात,
  40. अवंती या भैरव पर्वत शक्तिपीठ मध्यप्रदेश : मध्यप्रदेश में माता सती को अवन्ती के रूप में पूजा जाता है और यह भी माना जाता है। की मध्यप्रदेश के उज्जैन में ,माँ शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ऊपरी ओष्ठ गिरे थे। उज्जैन भारत के सभी शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।इस मंदिर को देखना मध्यप्रदेश लोग बहुत ही शुभ मानते है मध्यप्रदेश के निवाशी इस को हिन्दुओं का पवान धार्मिक स्थल मानते है जो यहाँ के सुन्दर मंदिरों में से एक है। उज्जैन में बाबा महाकाल का मंदिर भी बहुत सुन्दर जिसे देखने के लिए देश विदेश से लोग आते है।
  41. जनस्थल शक्तिपीठ महाराष्ट्र : माता सती का महाराष्ट्र में बहुत ही पुराना मंदिर है जो बहुत ही अधिक प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से अपने परिवार के साथ भारी मात्रा में आते है। यहाँ के मंदिर का द्रश्य अलग ही प्रकार का दिखाई देता है। वेद ग्रंथों के अनुसार माना जाता है की यहाँ पर माता सती का अद्भुद मंदिर है। और यह भी माना जाता है की महाराष्ट्र के नासिक नगर में माता सती की ठोढ़ी गिरी थी। जिससे यह मंदिर पूरी तरह विख्यात हो गया।
  42. गोदावरीतीर सर्वेशेल शक्तिपीठ कोतिलिंगेश्वर राजामुद्री आंध्रप्रदेश : माता सती के दर्शन करने के इलिए यहाँ पर लोग अधिक मात्रा में आते है और वह यहाँ पर उन्हें माँ गोदावरी के रूप में उनके दर्शन करते है। जिससे उन्हें माता सती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। और स्थान से वे हस्ते गाते ख़ुशी से अपने घर लोट आते है।प्राचीन वेद पुराणिक ग्रंथो के अनुसार माना जाता है कि आंध्रप्रदेश के कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। जिस कारण यह मंदिर तेजी गति से प्रसिद्ध हो गया जिसे देखने के लिए लोग विदेशों से बीजा पासपोर्ट बनवाकर यहाँ पर दर्शन करने के लिए आते हैं।
  43. माँ अंबिका शक्तिपीठ भारतपुर राजिस्थान : माता सती को माँ अंबिका के नाम से भी जाना जाता है यह भारतपुर राजिस्थान में स्थित है जी बड़ा ही सुन्दर और भव्य दिखाई देता है जिसकी मानता अधिक पाई जाती है। यह शक्ति पीठ गुजरात के जुनागड़ जिले में सोमनाथ मंदिर के पास स्थित है यहाँ प्रभास क्षेत्र में माता सति का उदर गिरा था। इस मंदिर के चारों ओर का द्रश्य बहुत ही शानदार दिखाई देता है। यहाँ पर हर तरफ हरयाली ही हरयाली के सुन्दर मैदान फैले हुये है जिन्हें देखकर अनेक कल्पनाये होने लगती है। जहाँ पर हर कोई सैर करने कर लिए आता है।
  44. रुतावती शक्तिपीठ पश्चिम-बंगाल : लोगों का मानना है कि जब भगवान के तांडव करने पर पृथ्वी के विनाश को बचाने की लिए भगवान विष्णु ने आपने चक्र सुदर्शन से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिसे बचने के लिए भोले नाथ जंगल-जंगल भागने लगे और जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट रुतावती में माता का बायां कंधा गिरा था। जिससे यहाँ पर माता सती की पूजा बड़े ही उत्कर्ष के साथ में की जाने लगी जो पश्चिम बंगाल में स्थित है। जिस मंदिर को देखने के लिए लोग भारी मात्रा में आते है और वे यहाँ पर माता सती को रुतावती के रूप में दर्शन करते है।
  45. मिथिला शक्तिपीठ बिहार : यह मंदिर माता सती का बहुत ही चमत्कारी मंदिर है जो वहाँ के सुप्रसिद्ध मंदिरों में गिने जाते है इस मंदिर माता सती को माता मिथला के नाम से जाना जाता है। और यह नाम यहाँ पर विख्यात हो गया है। इस शक्तिपीठ को सर्वानंदकरी के नाम से जाना जाता है। माता सती के शक्ति पीठ यहाँ माता सति का बांया स्कंध गिरा था। इस शक्ति पीठ की शक्ति माँ उमां भी कहते हैं माँ उमा के मंदिर के सोंदर्य अद्भुद दिखाई देता है। इस मंदिर को यहाँ के लोग पवन स्थल मानते है यहाँ पर धार्मिक कार्य होते ही रहते है।
  46. जयदुर्गा शक्तिपीठ पार्वती मंदिर बैजनाथधाम देवधर झारखण्ड : माँ जयदुर्गा का झारखंड में स्थित द्रस्यमय मंदिर है जिसकी कल्पना हर कोई नहीं कर सकता है जिसकी बनाबट अलग ही प्रकार से की गई है जिसका द्रश्य अनोखा है जहा पर बाबा बैजनाथ का मंदिर भी स्थित है जिसे देखना बहुत ही शुभ माना जाता है। यहाँ पर माता सती को जयदुर्गा माँ के नाम से प्रसिद्ध है जहाँ पर यह मूर्ति की हसती हुई प्रतीत होती हैऔर यह भी मन जाता है कि यहाँ पर माता साती का झारखंड के वैद्यनाथधाम पर माता का हृदय गिरा था। तब से यहाँ के लोगों में माँ जयदुर्गा ह्रदय में निवास करती है।
  47. नलहाटी कालिका तारापीठ पश्चिम-बंगाल : यह माता सती का शक्ति पीठ मंदिर प्रसिद्ध मंदिरों में से एक जिसे यहाँ के सुन्दर मंदिरों में गिना जाता है। यहाँ पर माता सती की पूजा कालिका माता के रूप में की जाती है। जो बड़े ही धूम-धाम के साथ में की जाती है पूजा के दिन मंदिर को अनोखा और अद्भुद सजाया जाता है। प्राचीन ग्रंथों का मानना है की माता सती यहाँ के पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूमि के नलहाटी में स्थित है| यहाँ पर माता सती के पैर की हड्डी गिरी थी। तब से इस स्थान को शक्ति पीठ की शक्ति का नाम कालिका देवी के नाम से जाना जाने लगा है।
  48. कर्णाट जयदुर्गा शक्तिपीठ हिमाचलप्रदेश : कर्णाट में माता सती की पूजा माँ जयदुर्गा के रूप में की जाती है जो यहाँ का धार्मिक और पवित्र स्थान है जो अधिक भव्य दिखाई देता है जिसे देखना बहुत ही शुभ मन जाता जाता है मंदिर अलोकिक और अद्भुद है। जिसे देखना लोग बहुत ही अधिक करता है। जिसकी कल्पना करना बहुत ही मुस्किल है माना जाता है की यहाँ पर माता सती के कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे। जिससे यह मंदिर और भी अधिक प्रसिद्ध हो गया है।
  49. महिषमर्दिनी शक्तिपीठ पश्चिम-बंगाल : पश्चिम बंगाल में माता सती का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जो अति प्रिय है अति सुन्दर दिखाई देता है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग देखने के लिए आते और माता सती के दर्शन महिषमर्दिनी के रूप में पूजा करते है पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रुमध्य (मन:) गिरा था। यह मंदिर बहुत ही सुन्दर है जिसे देखने के लिए लोग भरी मात्रा में आते है जिसकी मानता धार्मिक स्थलों में की जाती है।इस मंदिर की कल्पना करना करना बहुत ही मुश्किल है इस मंदिर के हर तरफ सुनदरता का द्रश्य दिखाई देता है।
  50. यशोर-यशोरेश्वरी शक्तिपीठ बांग्लादेश : यशोर स्थान में माता सती के हाथ की हथेली गिरी थी। जिस कारण सेः मंदिर अधिकतर आस-पास के क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रसिद्ध हो गया है। यह मंदिर बांग्लादेश में स्थित है। इस मंदिर की सुन्दरता सभी मंदिरों से अलग है। जो एक धार्मिक स्थल है हिन्दू पुराणिक कथायों के अनुसार माना जाता है की यहाँ पर माता सती के हाथ की हथेली आकर गिरी थी जिससे इस मंदिर की मान्यता ओर भी अधिक बढ़ गई है।
  51. अट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम-बंगाल : पश्चिम बंगला में माता सती के मंदिर का विशेष महत्त्व देखने को मिलता है यहाँ मंदिर प्राचीन काल से निर्मित माना जाता है वेद पुराणों का मानना है की पश्चिम बंगाल के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। तब से यहाँ पर हर त्यौहार को बड़े ही हर्ष के साथ में मनाया जाता है मंदिर के चारों ओर का द्रश्य अद्भुद लोकोकित है जो यहाँ पर आने वाल्व यात्रियों को आपनी और आकर्षित करता है।
  52. नंदिनी शक्तिपीठ पश्चिम-बंगाल : पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नंदीपुर स्थित बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। प्राचीनकाल का निर्मित स्थल माना जाता है , यहाँ पर लोग इस शक्तिपीठ को माँ नंदनी के रूप में पूजा करते है यहाँ पर लोग धार्मिक त्यौहार पर लोग बड़े हर्ष के साथ में मानते है नावरात्रि के समय में और भी मनमोहक होता है
  53. इन्द्राक्षा शक्तिपीठ कोनेश्वरम मंदिर ट्रिंकोमाली श्रीलंका : माना जाता है की माता सती के शरीर का उसंधि (पेट और जांघ के बीच का भाग) हिस्सा श्रीलंका में आकर गिरा था। जिससे इस मंदिर को शक्तिपीठ माना जाने लगा। हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में कहा जाता है। यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने का उल्लेख उल्लेख माना जाता है। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। यहां पर शिव का मंदिर भी स्थिर है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम के नाम से जाना जाता है।

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