मन , बुद्धि और कर्म को जगाने का माध्यम हैं योग। आज हमारे जीवन में कभी अपना ही हम भारतीयों ने आज पूरी दुनिया को योग का महत्व समझाया है कैसे हमारे भौतिक जीवन में योग का एक अपना ही महत्व लोगों का एक अपना नजरिया है। देखा जाए तो योग को अब 2 तरीकों से समझा जा सकता पहला आप अपने शरीर को फिट करने के लिए जो बयान करते हैं और विभिन्न प्रकारों की बीमारियों से बचने के लिए जो योग करते हैं।
वही जो कल आएगा वह भौतिक युग कल आएगा। दूसरा योग का चरण है उसमें आपकी आत्मबल और मन को केंद्रित करने के लिए आपकी बुद्धि की क्षमता को बढ़ाने के लिए आपको अपने कर्म फल को जगाने के सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए जो योग किया जाता है उसको ध्यान योग कहते हैं।
पतंजलि और बाबा रामदेव ने योग को जन-जन तक पहुंचाया है आज भारत ही नहीं अपितु दुनिया के अनेक देश के आम जन दी योग को जानने लगे हैं और योग की शक्ति को पहचानने भी लगे। परंतु अभी भी हम दुनिया की बात नहीं करते हम बात करते हैं इस भारत भूमि मैं निवास करने वाले आम लोगों की जिनमें अभी भी योग को लेकर आम भ्रांतियां बनी हुई है।
लोगों को अभी यह समझना होगा कि उनके जीवन में योग का योगदान क्या हो सकता है। योग उनके जीवन को किस तरह प्रभावित कर सकता है। आपने बहुत सारे लेखों में पड़ा होगा जोड़ने का भी काम करता है मैं बहुत सारी परिभाषा को आप तक ना बता कर मैं सीधी सी बात करता हूं या जोड़ना क्या होता है जोड़ना होता मन को सही तरीके से जोड़ना या आत्मा को सीधे आपके शरीर से जोड़ना ही योग है।
आमतौर पर लोगो मे पांच कमियां होती है: –
योग हमारे लिए क्यों आवश्यक है यह तो हमें समझना ही होगा आज इस भौतिक जीवन में आमतौर पर लोगों में कुछ कमियां होती हैं जिनमें से में प्रमुख पांच कमियों के बारे में आज आपको बताने जा रहा हूं। इन पांच कमियों को अगर हम लोग के साथ जोड़ते हैं तो कुछ हद तक हमारे व्यक्तित्व विकास में और हमारे दैनिक जीवन के व्यवहार में कुछ अनुशासन को हम प्राप्त करते हैं जो हमारे जीवन के रास्ते को सरल बनाता है।
- किसी के साथ अटेचमेंट ,
- किसी से भी चिडना ,
- अहंकार ,
- डर, और
- अज्ञान।
योग इन व्यवहार को अनुशासित करते हैं।
किसी के साथ अटैच में हममें से ज्यादातर लोगों का किसी ने किसी के साथ बहुत ज्यादा अटैचमेंट और हम उनसे इतने ज्यादा जुड़े होते की किन्ही कारण से अगर वो हमसे दूर हो जाते हैं नाराज हो जाते हैं या कहीं ना कहीं हमारे उन दोनों उन व्यक्तियों के बीच किसी बात को लेकर अगर कोई गलतफहमी हो जाती है तो वह हमारे मन में काफी अंदर तब जाकर हमारे जीवन को प्रभावित कर देता है। और हमारे साधारण व्यवहार को बदल कर या तो हमें क्रोध की ओर अग्रसर करता है या फिर हमारे मन को काफी दुखी करता है उससे बचने के लिए हम योग के रास्ते पर चल सकते हैं।
अब हम बात करते हैं दूसरी जिसे हम दोस्त भावना भी कहते हैं आमतौर पर हम इसे चिड़ना भी कहते हैं कभी-कभी हम ऑफिस में या आम जीवन में कोई व्यक्ति से किसी चीज को बार बार विवाद हो जाने पर उस व्यक्ति को देख कर हमारे अंदर चिड़चिड़ा हट की भावना उत्पन्न होती है और हम उस व्यक्ति को देखना ही नहीं चाहते अगर वह हमसे बात करता है किसी चीज को या वह हमारे बार-बार हमारे मन को दुखी करने की कोशिश करता तो हमारे अंदर से बचने के लिए हमें रास्ता अपनाना चाहिए।
कई बार हमारे पास कुछ ऐसा होता है जिसे लेकर हमारे अंदर बहुत अहंकार की भावना जाग जाती है यही हम भावना हमारे लिए काफी खतरनाक साबित होती है। जब हमारा व्यक्तित्व विकास पर होता है हम किसी उपलब्धि को प्राप्त कर लेते हैं और अन्य लोगों से हम बहुत अच्छे स्तर पर होते तो हमारे अंदर एक अहंकार की भावना जाग जाती है।
जैसे मैं सबसे अच्छा हूं कोमा मैं सबसे सुंदर हूं, मैं सबसे अमीर हूं मैं सबसे प्रतिभावान हूं या मेरे पास यह है वह है कहीं ना कहीं हंकार होता और इस अहंकार के कारण ही हम अपने समाज के अन्य लोगों से दोस्तों से रिश्ते नातों से हम कहीं ना कहीं दूर होने लगती क्योंकि हमारे अंदर की भावना जाकर मैं हूं तू ही होगा अगर मैं नहीं हूं तो कुछ नहीं हो सकता।
हम ऐसे हर किसी को कभी न कभी किसी न किसी रूप में किसी न किसी चीज के खोने का डर होता है। यही डर हमें कभी-कभी सफलता की मंजिल से कहीं दूर ले जाता है।
कभी किसी को अंधकार से डरता है, तो कभी किसी को मरने से डर, किसी को खोने से डर लगता है, किसी को परीक्षा से डर लगता है, डर तो हर किसी को कहीं ना कहीं लगता है। डर किसी को कामयाब इंसान बनाता है तो कहीं डर आपको कामयाबी से कहीं दूर ले जा सकता है। हर कोई डर से जीत नहीं सकता लेकिन कुछ लोग डर से जीत हासिल कर लेते हैं। कहते हैं ना डर के आगे जीत है।
अज्ञान जो हमारे लिए इतना घातक होता है। जो हमारे जीवन की दिशा और दशा दोनों ही बदल सकता है। हमारे भारतीय दर्शन में अज्ञान के बारे में बहुत ही कहा गया है इसे अविद्या भी कहा जाता है। यह व्यक्ति के विकास के रास्ते में एक बाधा के रूप में जिसे हम ज्ञान से ही इस बाधक को को पार कर सकते हैं। और ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक मार्ग योग का है।
योग के 8 नियम है
- यम,
- नियम,
- आसन,
- प्राणायाम
- प्रत्याहार,
- धारणा,
- ध्यान और
- समाधि।
योग के पहले प्रथम दो अंग यम और नियम व्यक्ति को नैतिक रूप से अनुशासित करते हैं। यह व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।
यम का अर्थ है :-
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन करना ।
योग के आठ प्रमुख अंग बताए गए जिसमें यम प्रथम अंग है। जिसमें यम का अर्थ होता है निर्वत होना यह आपको किसी भी वस्तु के प्रति मुंह या लगाओ से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करता है।
यम के पांच अंग है:-
अहिंसा
यह योग की साधना करने वालों को हिंसा का सर्वता परित्याग करते हुए मन वचन और कर्म से किसी प्राणी के हिंसा न करने से तत्पर कि आप हिंसा को मन में भी हिंसा का भाव आपके ना हो और वाणी में भी आपके हिंसक के भावना ना हो।
सत्य
इसमें मन बच्चन एवं कर्म से सत्य का पालन करते हुए झूठ और मिथ्या का त्याग ही सत्य है। अर्थात चिंतन और कथन के साथ-साथ कर्म से हमेशा सत्य के मार्ग पर ही चलना।
अस्तेय
मन वचन या कर्म से किसी वस्तु का किसी अन्य से छिनना या हनन नहीं करना किसी को उस वस्तु से उसके अधिकारों को बंद चित नहीं करना मतलब किसी दूसरे के स्वामित्व वाली किसी वस्तु का ग्रहण ना करने से।
ब्रह्मचर्य
मन वचन और कर्म से योन स्वयं अथवा मैथुन का सर्वथा त्याग ही ब्रह्मचर्य। इसमें आपको बताया जाता है कि जो योग का साधक होता है ऐसी उत्तेजना को पढ़ाती उसका सेवन नहीं करना चाहिए इसीलिए लहसुन और प्याज का त्याग किया जाता है क्योंकि यह काम को काफी उत्तेजित करता है जिसे तमाशा खून भी कहा जाता है। साथ ही ऐसे दृश्यों को ना देखना जिससे या आपके ब्रह्मचारी के नियम में बाधा उत्पन्न हो।
अपरिग्रह
अपने स्वार्थ सिद्धि और लाभ के लिए किसी भी प्रकार से उपयोगिता से ज्यादा धन संपत्ति एवं भौतिक भूख की वस्तुओं का संचय ना करना ही अपरिग्रह है।
नियम का अर्थ है: –
शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान (कर्मफल ईश्वर को समर्पित करना) का पालन करना। इसका उद्देश्य हैं मन विचलित करने वाली इच्छाओं पर नियंत्रण।
आसन का अर्थ है :-
आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ,शरीर को अनुशासित करते हैं। आसन, प्राणायाम एवं प्रत्याहार, योग के ये तीन अंग व्यक्ति को शारीरिक रूप से अनुशासित करते हैं।
प्राणायाम का अर्थ है :-
पतंजलि के अनुसार योग-साधना के लिए जरूरी सुख-पूर्वक बैठने की रीति आसन है। जबकि हठयोग में इसका विस्तृत अर्थ लिया गया है।
प्रत्याहार का अर्थ है :-
जिसमें शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए कई आसन हैं। प्राणायाम प्राण वायु को नियंत्रित करना है तो प्रत्याहार का अर्थ है- इच्छाओं को संयमित करना। उद्देश्य-मन और शरीर को स्थिर और स्वस्थ बनाना।
धारणा का अर्थ है :-
धारणा, ध्यान और समाधि का संबंध मानसिक अनुशासन से है। धारणा मतलब है नाभिचक्र, हृदयकमल, नासिकाग्र या जिह्वा के आगे के भाग पर चित्त को स्थिर करना।
ध्यान का अर्थ है :-
ध्यान चित्त को पूरी तरह एकाग्र करना है। ध्यान में अपना, ध्यान बिंदु और ध्यान की अवस्था का अनुभव बना रहता है।
समाधि का अर्थ है :-
जबकिसमाधि में यह अनुभव भी खत्म हो जाता है।
धारणा, ध्यान और समाधि: मन को अनुशासित करते हैं
मन और शरीर को संपूर्ण बनाने के लिए योग किया जाता हैं।
“पार्श्वोत्तनासन: पाचन शक्ति के लिए”
आपकों जमीन पर सीधे खड़े हो जाना हैं। बाएं पैर को दाएं पैर से पीछे कम से कम दो फुट पर ले जाएं। दोनों हाथों को ऊपर करें और धीरे-धीरे आगे की तरफ झुकना शुरू करें। आगे झुकते समय हाथों को भी आगे लाना शुरू कर दें। जब आपका चेहरा दाएं घुटने के करीब आ जाता है, तो हथेलियों को दाएं पैर पर र लें।
अगर आप कर सकें तो हाथों को कमर के पी हाथ जोड़ने की मुद्रा में भी ला सकते हैं। इस योग मुद्रा में अपनी क्षमता के अनुसार कुछ देर रहें। और फिर धीरे धीरे सामान्य अवस्था में आ जाएं।
फायदा- पाचन शक्ति में सुधार, रीढ़ की हड्डी, कूल्हों, कंधों और कलाइयों में लचीलापन आता है। पैर मजबूत होते हैं। दिमाग व मन शांत होता है।
उत्तान शिशुनासन : रीढ़ की हड्डी के लिए
वज्रासन में बैठ जाएं। गहरी सांस लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर की तरफ उठाएं। धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए आगे की तरफ झुककर अपने माथे को जमीन के पास रखें।
अब अपनी हथेलियों को भी जमीन पर रखें। अब कुछ देर तक इसी मुद्रा में रहकर सामान्य रूप से सांस लेते रहें। सांस खींचते हुए वज्रासन की मुद्रा में आ जाएं। पर मजबूत हात हा दिमाग शांत होता है।
फायदा- रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन को बढ़ाने में भी मदद करता है। तनाव दूर करता है । पीठ और कन्धों की स्ट्रेचिंग करता है। मन और शरीर को शांत करता है।
अष्टांग नमस्कार :आठ अंगों पर असर
वज्रासन में बैठ जाएं। हाथों को जमीन पर रखें और तब तक आगे बढ़ें जब तक कि बाहें पूरी तरह से जमीन पर न आ जाएं। सुनिश्चित करें कि शरीर का वजन संभालने ले लिए शरीर के पैरों, घुटनों, छाती और ठुड्डी और हाथों की जमीन पर होंगें।
इसके बाद पेट को जमीन से ऊपर उठाया जाता है। कुछ देर तक इस होता पोजीशन में रहें और पहली की अवस्था में आ जाएं।
फायदा- ये योग छाती को खोलता है। फेफड़ों से संबंधित बीमारियों को रोकने में मददगार है। हाथ को मजबूत करता है। इसके नियमित अभ्यास से पेट की चर्बी कम कर सकते हैं। यह पैर की अंगुलियों को मजबूती देता है। पाचन में भी सुधार होता है।
आनंद बालासन व मन के लिए
पीठ के बल लेट जाएं। धीरे-धीरे सांस लें और छोड़ें। सांस छोड़ते हुए घुटनों को छाती की तरफ मोड़ें, पैर के तलवे छत की तरफ होने चाहिए। कूल्हों को जमीन से मिला रहने दें। हाथों से दोनों पैरों के तलवे को पकड़ें। अब धीरे-धीरे घुटनों को फैलाते हुए कांख की ओर ले जाएं।
धीरे-धीरे शरीर को एक तरफ और फिर दूसरी तरफ घुमाएं। इस आसन को 30 सेकंड से 1 मिनट तक किया जा सकता है।
फायदे: हाथों और पैरों दोनों को राहत देता है। तनाव, चिंता और थकान को दूर करता है। पीठ को राहत देता है। पीठ के निचले हिस्से में दर्द हो तो दूर करता है। दिमाग शांत रहता है। पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाता है।
FAQ
योग क्या हैं ?
मन , बुद्धि और कर्म को जगाने का माध्यम हैं योग।
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