वीर योद्धा जिसने देश के लिए योगदान दिया महानायक छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता की कहानी। राष्ट्रभक्त योद्धा व वीर योद्धा जिसने देश के लिए योगदान दिया। महानायक छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 और मृत्यु 1680 में हुई , पिता शहाजी और माता जीजाबाई थी।
शिवाजी भारत के महान योद्धा एवं रणनीतीकार थे। उनके पिता शहाजी पूना राज्य के शासक थे। उनकी माता ने उनके मन में एक बात बैठा दी की हिन्दूओं की दुर्दशा हिन्दूओं पर हो रहें अत्याचार के लिए मुस्लिम शासक जिम्मेदार है।
एक बार शहाजी, शिवाजी को बादशाह मोहम्मद शाह आदिल के दरबार में लेकर गए वहां पर शाहजी ने बादशाह के समक्ष झुककर सलाम किया ओर शिवाजी को भी ऐसा करने को कहा, तब शिवाजी सिर्फ बादशाह को घुरे जा रहे थे पर तुरन्त शहाजी ने कहा यह अभी बच्चा हैं दरबार के तौर तरिके से वाकिफ नहीं है। और उन्हें अपने सैनिकों के साथ अपने निवास भेज दिया ।
रास्ते में उन्हें एक कसाई गाय को बूचड़ खाने ले जाते दिखा तो, उन्होंने क्रोध में उस पर तलवार से वार कर दिया परन्तु साथ चल रहे सैनिको ने उन्हें ऐसा करने से रोका फिर भी उन्होने उसका एक हाथ काट दिया ।
शिवाजी युवा हुए तब वह चतुर सुजान दादोजी के संरक्षण में आ गए। दादोजी ने शिवजी के लिए पहले ही राजनीतिक कार्यक्रम तय कर रखा था। ताकि उसे हिन्दू पुनरूत्थान के योद्धा के रूप में स्थापित कर सकें । रूपरेखा यह थी कि एक ‘स्वराज्य’ नामक साम्राज्य की रचना की जाए जिसमें हिन्दू हित, धर्म तथा संस्कृति सुरक्षित हो इसका आरम्भ पूना के चारों ओर स्थित 24 मावल क्षेत्रों को पूना राज्य में मिलाकर किया जाना था।
आदिल साम्राज्य के दुर्दान्त योद्धा अफजल खां ने बंगलौर के निकट एक लड़ाई में शंभाजी को धोखे से मार डाला था। अब आदिल साम्राज्य के लिए शिवाजी को समाप्त करना अति आवश्यक हो गया था क्योंकि शिवाजी ने बीजापुर को बहुत हानि पहुंचाई थी और उसकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी।
बीजापुर दरबार ने अफजल खां को शिवाजी को ठिकाने लगाने कि जिम्मेदारी सोंपी । अफजल खां एक विशाल सेना लेकर रवाना हुआ उसकी सेना स्वराज्य क्षेत्र को रौंदता हुआ मंदिरों को तोड़ता हुआ आगे पुरे राज्य में कोहराम मचा रहा था ।
शिवाजी को समझौते के लिए संदेश भेजा तो शिवाजी ने भी पत्र का उत्तर देते हुए दोनो को एक स्थान पर मिलने का तय किया। दोनो अपने एक एक सिपाही के साथ वार्ता के लिए आए और गले मिले और अफजल खां ने मौका देखकर शिवाजी पर वार करना चाहा पर शिवाजी ने अपनी चपलता से उसके वार करने से पहले ही उस पर वार करके उसे मार डाला।
जब शिवाजी आगरा गए तो शिवाजी का सम्मान करने के बजाय उन्होंने उनका अपमान किया और उन्हें कारागार में डाल दिया । उन्हें ऐसी हवेली में कैद कर रखा था जहां से भागना असंभव था । कुछ दिनों के बाद उन्होंने बीमारी का नाटक किया। उन्होंने अपने शुभचिन्तकों में मिठाईयाँ बांटने की आज्ञा मांगी ताकि उन्हें स्वास्थ्य लाभ मिले।
हवेली से रोज बड़ी-बड़ी टोकनीयों में मिठाईयां लेकर शहर में भेजी जाने लगी पर पहरेदार कुछ लापरवाही करने लगे क्योंकि हर बार टोकरियों में मिठाईयां जा रही थी । फिर एक दिन शिवाजी उन टोकरीयों के अन्दर बैठ कर बाहर निकल आए।
शिवाजी ,दुर्ग में अपने महल पहुंचे तो जीजाबाई ओर जनता की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा । शिवाजी का विधिवत हिन्दू साम्राज्य के छात्रपति सम्राट के रूप में राज्यअभिषेक किया गया ।
शिवाजी ने हिन्दुओं का खोया सम्मान तथा आत्मविश्वास अपनी खड्ग के बल पर जीतकर ला दिखाया था । ऐसे भारत के वीर सपूतो ने भारत माँ की धरती की रक्षा अपने प्राणों की आहुति देकर की।
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