Rani Laxmi bai jhansi
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मरते दम तक लड़ती रही झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857

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मरतेदम तक लड़ती रही झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857 की क्रांति की वीर गाथा “बुंदेलों हर बोलों के मुंह हमने सुने कहानी थी, खुब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।” सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता सुन कर आज भी मेरे वदन के रोम वीर और करुण रस से खडें हो जातें हैं।

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था, प्यार से उसे मनु कहा जाता था, मनु की माँ का नाम भागीरथीबाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था । मनु ने बचपन में ही शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की थी। मनु को घुड़ सवारी का बचपन से ही शौक था।

मई 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वह झाँसी की रानी बनी, विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा। उनका एक पुत्र हुआ जो सिर्फ तीन माह तक ही जीवत रहा । गंगाधर ने अपने भाई के पुत्र को गोद लेकर उसका नाम दामोदर रखा लेकिन ब्रिटीश राज को यह मंजूर नही था।

इसलिए उन्होने दामोदर के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया, उस मुकदमें में दोनो ही तरफ से बहुत बहस हुई लेकिन बाद में इसे खारिज कर दिया गया। कम्पनी शासन उनका राज्य हड़पना चाहती थी, राज रानी लक्ष्मीबाई ने जितने दिन भी शासन संभाला वो अत्यधिक सुझबुझ के साथ प्रजा के लिए कल्याण कार्य करती रही, इसलिए वो अपनी प्रजा की स्नेही बन गई।

ब्रिटिश अधिकारीयों ने राज्य का खजाना जब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज को रानी के सालाना खर्च में से काटने का फरमान जारी कर दिया। इसके परिणामस्वरूप रानी को झाँसी का किला छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा अंग्रेजों से युद्ध चल रहा था।

जिस किले में अंग्रेज छुपे थे उस किले पर रानी के सिपाही आक्रमण करते रहे। परंतु अंग्रेजो ने अपनी गोलियों की बौछार से उन सिपाहियों को पीछे धकेल दिया। अगले दिन तक शाम को लड़ाई में कुछ ढील देखने को मिली । अंग्रेज भूख से छटपटा रहे थे । उन्होंने भोजन के लिए रानी के पास संदेश भेजा।

रानी को उन पर दया आ गई और उसने उनके लिए दो मन की रोटियां बनवाकर सुरंग के माध्यम से किले तक पंहुचाई । अंग्रेज अधिकारीयों ने उन्हें प्रणाम किया।

उन दिनो स्वाधीनता का युद्ध दिन-प्रतिदिन जोर पकड़ता जा रहा था। अंग्रेज सैनिक गार्डन किले के उत्तरी फाटक पर छिपा था वह रह-रहकर रानी के सैनिको पर गोलियां चला रहा था तभी रानी को झांसी का एक तिरंदाज मिल गया। तीरंदाज ने अपने एक ही तीर से गार्डन को मौत के घाट उतार दिया।

उसके मरने से अंग्रेजो के खेमे में अफरा तफरी मच गई। उन दिनों डाकू सागर सिंह का अत्याचार बहुत बढ़ गया था उसने झांसी के कई गांवो में लूटपाट मचा रखी थी। रानी ने सैनिक खुदाबख्श को बुलाया और उसे आदेश दिया कि सागर सिंह को जिंदा या मुर्दा हमारे सामने पेश किया जाए।

लेकिन खुदाबख्श और सागर सिंह कि लड़ाई में खुदाबख्श घायल हो गया और सागर सिंह वहां से भाग गया। ये खबर मिलते ही रानी लक्ष्मीबाई अपनी कुछ सहेलीयों के साथ सागर सिंह कि खोज में निकल गई बारिश बहुत तेज हो रही थी। दोनो में लड़ाई हुई और उसे बंदी बना लिया गया । रानी की इस वीरता की खबर दूर-दूर तक फैल गई।

अंग्रेजों ने झांसी को चारों ओर से घेर लिया। रानी लक्ष्मीबाई और उनके सैनिकों ने मरतेदम तक लड़ने का फैसला किया और रानी ने अपने पुत्र दामोदर को पीठ पर बांधकर अंग्रेजो से लड़ने किले के पास पहुंच गई। अंग्रेजो ने उन्हे चारो ओर से पेर लिया पर वह मरतेदम तक लड़ती रही। और वह वीरगती को प्राप्त हुई आज रानी हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी जीवनगाथा भारत की लाखों-करोड़ो महिलाओं को प्रेरणा प्रदान करती है। “खुब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।”

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