Rani Avantibai Lodhi

क्या आपकों पता हैं वीरांगना रानी अवंतिबाई लोधी का बलिदान (Veerangna Rani Avantibai Lodhi)

5/5 - (1 vote)

ऐसे बहुत ही काम लोग हे जिन्हें रानी अवंतिबाई लोधी के बारे में पता है रानी अवंतिबाई लोधी का देश को आजादी दिलाने बहुत बड़ा हाथ है 1817 से 1851 तक रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिहं थे। अवंतिबाई लोधी का जन्म 16 अगस्त 1831 में रामगढ़ के गरीब परिवार में हुआ था। अवंतिबाई बचपन से ही बहुत सहसी थी। इन्होनें तीर-कमान, भाला, तलवार, चलाना बचपन में सीख लिया था। बालकपन में ही अवंतिबाई की तलवारबाजी और घुड़सवारी देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए।

इनकी वीरता को देखकर रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिहं बहुत प्रसन्न हुए लक्ष्मण सिहं ने अपने पुत्र विक्रमादित्य के विवाह को रानी अवंतिबाई से करने का निर्णय कर लिया राजा के निर्धन हो जाने के बाद विक्रमादित्य सिहं ने गद्दी संभाली। उनका विवाह बाल्यावस्था में ही मनकेहणी के जमींदार राव जुझार सिंह की कन्या अवंतीबाई से हुआ।

राजा विक्रमादित्य बचपन में ही वीर गति को प्राप्त हो गये जिसके पश्चात रानी को राज्य चलने में कठनाई जा रही थी शादी पश्चात को दो पुत्र प्राप्त हुये अमान सिंह और शेर सिंह। इस मोके को देखकर अंग्रेजों ने राज्य में हमला करने का विचार किया। महारानी ने पुत्रों को बालक अवस्था में ही राज्य का राजा घोषित कर दिया। अंग्रेजो ने पुत्र को रजा मानने से इंकार कर दिया। रानी अवंतिबाई ने 1857 में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अनेक युद्ध लड़े जिससे 1857 की क्रांति को रानी अवंतिबाई के नाम से भी जाना जाता हैं।

1857 की क्रांति में रानी अवंतिबाई लोधी का योगदान

1857 की क्रांति में रानी अवंतिबाई लोधी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिन्हें इतिहास के पन्नों में बहुत ही कम जगह दिया गया है वीरांगना रानी अवंतिबाई 1857 की पहली महिला थी। जिन्होंने भारत वर्ष के इतिहास को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1857 की क्रांति में सागर और नर्मदा परिक्षेत्र का निर्माण हुआ जिससे अंग्रेजों की शक्ति में और अधिक वृद्धि हो गई।

राज्य को आजादी के चंगुल से बचने के लिये अवंतिबाई ने राज्य के सभी गावों में प्रसाद की पुड़िया और चूड़ियों के डिब्बे भी साथ में भेजे जिसमें यह कहा गया की जीसको युद्ध नहीं लड़ना है वे चुड़ियाँ पहन कर घर पर बैठ जाये चिठ्ठी लेने का अर्थ युद्ध के लिए सामर्थान था। अवंतिबाई की चिठ्ठी पाकर सभी राज्य के सभी आदिवासियों ने यह चिठ्ठी को पड़ कर युद्ध के लिए सहमत हो गये। और सभी आदिवासियों ने युद्ध के लिए तैयारीयां शुरू कर दी।

रानी अवंतिबाई की जीवन गाथाएँ

रानी अवंतिबाई ने अपने जीवन कई युद्ध लड़ी और अनेक युद्धों में उन्हें सफलतापूर्वक जीता लिया है 1857 की लड़ाई में भारतियों को स्वतंत्रता दियाने के लिए आपने प्राणों की निछावर कर दिया। अवंतिबाई लोधी 1857 से स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना है माहानायक होते हुए भी इतिहास में बहुत ही काम जगह दी गई है देश में बहुत ही कम लोग है जिन्हें इनके बारे में जानकारी प्राप्त है।

स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी नेता झाँसी की रानी से काम नहीं है फिर भी उन्हें कम दर्जा दिया गया है युद्ध के दोरान मंडला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंगटन ने रानी अवंतिबाई से आपने अपमान के बदला लेना चाहता था वाडिंगटन ने आपनी सेना एकत्रित करके रामगढ़ में हमला कर दिया। जिसमें

रीवा नरेश ने भी आपनी सेना को सम्मलित कर दिया जब की रानी अंग्रेजो से युद्ध करने में कमजोर थी फिर भी उन्होंने अंग्रेजो को जमकर मुकाबला किया ब्रटिश सेना बाल और युद्ध सामग्री अधिक होने के कारण कई गुनाह अधिक शक्तिशाली हो गई। अतः इस स्थिति को देखते हुये रानी देवाहरगढ़ पहाड़ी की और निकल पड़ी रानी के निकलने के पश्चात अंग्रेजों ने रामगढ़ को चरों तरफ स पूरी तरह घेर लिया और वहां पर आपना अधिकार कर लिया।

रामगढ़ को घेरने पश्चात अंग्रेजो ने सन्देश भिजवाया की आपने आप को अंग्रेजीशासन के हवाले कर दो अवंतिबाई ने अशिविकर करते अपना सन्देश भिजवाया की में मरते-मरते अपने प्राणों का बलिदान कर दूंगी लेकिन अंग्रेजों के हाथ कभी नहीं आउंगी।

जिसे सुनकर अंग्रेजों ने देवाहरगढ़ पर हमला कर दिया जिसमें रानी की सेना के बीचों-बीच कई दिन तक युद्ध चलता रहा और रानी की सेना कम पड़ गई व अंग्रेजों ने रानी को चारों तरफ से घेर लिया। अंग्रेजों द्वारा घिर जाने पर रानी अवंतिबाई ने अपने आप को तलवार मारकर स्वतंत्रता संग्राम की बेदी में अपने प्राणों की आहुति दे दी।

वीरांगना रानी अवंतिबाई के नाम पर ही बना हैं बरगी डैम – बरगी डैम का नाम वीरांगना रानी अवंतिबाई के नाम पर इस लिया रखा गया है की अवंतिबाई लोधी का जन्म 16 अगस्त 1831 में रामगढ़ के गरीब परिवार में हुआ था। जो की बरगी

error: Content is protected !!