Surendra Singh Chouhan Mohad
कहानी

सुरेन्द्र सिंह चौहान मोहद जिसने अपने गाँव के विकास में अपना अहम् योगदान दिया

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सुरेन्द्र सिंह चौहान मोहद जिसने अपने गाँव के विकास में अपना अहम् योगदान दिया जो ग्राम पंचायत के सफल मुखिया की सच्ची प्रेरक कहानी हैं । ये कहानी हैं , एक छोटे से गाँव मोहद की जो नरसिंहपुर जिला मध्यप्रदेश स्थित हैं। यह गाँव भी भारत के अन्य गाँवों के समान ही था, जहाँ पर गाँव गंदगी और बिमारियों से ग्रस्त था। लगभग 450 परिवार की संख्या वाला यह आज गाँव हरा-भरा एवं साफ-सुथरा हैं साथ ही विकास के पथ पर अग्रसर कई नज़ारे आपको देखने को मिल जायेंगे।

Surendra Singh Chouhan Mohad
Surendra Singh Chouhan Mohad

इस गाँव को आज इस स्तर तक विकसित करने का और सुन्दर गाँव के सपने को जमीनिस्तर पर उतारने का जो प्रयास श्री सुरेन्द्र सिंह चौहान जी ने किया उस का परिणाम यह रहा की वह सन 1969 से 1994 तक इस गाँव के निर्विरोध सरपंच पद पर बने रहे रहे।

रा.स्व.संघ के अ.भा. सह सेवा प्रमुख श्री सुरेन्द्र सिंह चौहान का गत 1 फरवरी को निधन हो गया। वे 75 वर्ष के थे। 2 फरवरी को नरसिंहपुर (म.प्र.) जिले के आदर्श ग्राम मोहद में उनका अंतिम संस्कार हुआ, जिसमें जबलपुर विभाग के सभी पदाधिकारी, कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में ग्रामवासी उपस्थित थे। देशभर में श्री सुरेन्द्र सिंह चौहान की पहचान आदर्श ग्राम के कल्पनाकार के रूप में है।

7 अगस्त1933 को सुरेन्द्र सिंह चौहान का जन्म ग्राम मोहद में हुआ। सभी लोग इन्हें ‘भइयाजी’ के नाम के संबोधन से पुकारते थे।इनकी शिक्षा-दीक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पूरी हुई और उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ स्नातकोत्तर (अंग्रेजी) की उपाधि प्राप्त की।


वे कुछ समय के लिए डिग्री कालेज में प्राध्यापक के तौर पर भी काम किया।इसके बाद वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ने के बाद त्यागपत्र देकर वे अपने गांव वापस आ गये।वे खेती-किसानी के साथ-साथ अब उनका सपना अपने गांव को एक आदर्श गांव और प्रत्येक घर को आदर्श गृह बनाने के लिये वे प्रयासरत हो गये।


उनकी योजना और कार्य के प्रति समर्पण भाव को देखकर चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के संस्थापक नानाजी देशमुख ने उन्हें उप-कुलपति का गुरुत्तर दायित्व भी सौंपा, जिस पर सुरेन्द्र सिंह चौहान जी ने 4 वर्षों तक अपनी सेवाएँ देते रहे रहे। इसके साथ ही उन्होंने अपना पूरा समय एक आदर्श ग्राम योजना को समर्पित कर दिया। आदर्श ग्राम मतलब एक स्वावलम्बी गाँव सुरेन्द्र सिंह चौहान।

उनका कहना था कि सबसे पहले गाँव के विकास के लिये मुझे कुछ करना चाहिए। उनका मानना था कि गाँव भी एक बड़ा परिवार है। इस लिए हम जो कुछ अपने घर और परिवार के उन्नति और विकास के लिए करतें हैं, वही हम अपने गाँव के लिए करें।

जैसे हम अपने घर में परिवार के सदस्यों के लिए अच्छे संस्कार, अच्छा स्वास्थ्य सुविधाएँ, अच्छी शिक्षा, चारोंओर स्वच्छता, प्रेम और सौहार्द, सुख- समृद्धि एवं वैभव-सम्पन्नता चाहते हैं, ठीक उसी प्रकार हम अपने गाँव के विकास के लिए भी करें यह सबके लिए प्रयास आवश्यक है।

सबसे पहले उन्होंने गाँव के सभी लोगों के साथ बैठक कर के सबसे सहयोग की अपील की। गाँव की गन्दगी को दूर करने के लिए हर घर में गोबर गैस संयंत्र के निर्माण पर बल दिया। गोबर गैस के उपयोग से लकड़ी काटने की जरूरत नहीं पड़ी । जिस कारण यह गाँव ऊर्जा गाँव बन गया।

गाँव में अच्छे संस्कार स्थपित करने के लिए उन्होंने विद्यालय को केन्द्रितः किया। विद्यालय में गाँव के हर घर से बच्चे जाते थे। सामान्य शिक्षा के लिए संस्कार निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास से संबंधित प्रतिदिन कुछ अलग से अभ्यास जैसे प्रार्थना, श्रमदान, वाद-विवाद एवं बौद्धिक गतिविधियाँ प्रारंभ की गई। इस प्रकार विद्यालय पूरे गाँव को संस्कारित करने का प्रभावी केन्द्र बन गया।

उनके प्रयासों का परिणाम आंगे जाकर यह हुआ कि लकड़ी न कटने के कारण गाँव चारों तरफ से गाँव हरा-भरा हो गया। गोबर गैस से प्राप्त गोबर खाद से कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई। साथ ही अच्छे संस्कार आधारित शिक्षा के कारण समृद्धि के साथ आने वाले दुर्गुणों पर नियंत्रण स्थापित हुआ।

गाँव में संस्कार आधारित विकास के लिए उन्होंने विद्यालय को केन्द्रितः किया। विद्यालय में सबके घर से बच्चे जाते थे। सामान्य शिक्षा के लिए संस्कार निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास से संबंधित प्रतिदिन कुछ अलग से अभ्यास जैसे प्रार्थना, श्रमदान, वाद-विवाद एवं बौद्धिक गतिविधियाँ प्रारंभ की गई। इस प्रकार विद्यालय पूरे गाँव को संस्कारित करने का प्रभावी केन्द्र बन गया।

उनके प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि लकड़ी न कटने के कारण चारों तरफ से गाँव हरा-भरा हो गया। गोबर गैस से प्राप्त खाद से उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई, साथ ही संस्कार आधारित शिक्षा के कारण समृद्धि के साथ आने वाले दुर्गुणों पर नियंत्रण स्थापित हुआ।’

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