पुरावस की सरपंच बादामी बाई चार साल के संघर्ष के बाद अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में अपनी पंचायत के स्कूल में स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहरा पाई।
तिरंगा मेरी शान, फहराना पहचान
दलित महिला सरपंच पूरी गरिमा के साथ ध्वजारोहण कर सके, इसके लिए प्रशासन व पुलिस के अफसर तो मौजूद थे ही, साथ ही स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया के प्रतिनिधि भी मौजूद थे 2009-10 में हुए चुनाव में बादामी देवी पुरावस पंचायत की सरपंच बनी।
इसके बाद से ही उन्हें गाँव में ध्वजारोहण नहीं करने दिया जा रहा था। इसके लिए बदामी देवी ने मानवाधिकार आयोग से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक ध्वजारोहण करने की अपील की।
इसके बाद आयोग ने प्रशासन को नोटिस जारी किया और मुख्यमंत्री ने भी बादामी देवी से ही ध्वजारोहण कराने के लिए प्रशासन को निर्देश दिए। इसके बाद वे अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में पंचायत में बने स्कूल में ध्वजारोहण कर पाईं।
बादामी बाई मुरैना
इससे पता चलता है कि कुछ सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति पाने के लिए बादामी बाई जैसे सैकड़ों लोगों को जोखिम उठाना पड़ता है, संघर्ष करना पड़ता है, तभी बदलाव आ सकता है।
सामुदायिक नेतृत्व के द्वारा सामाजिक समस्याओं के निराकरण के लिए किये गये इन प्रयासों से आप समझ गये होंगे कि समुदाय शक्तिशाली होता है, किन्तु इस शक्ति की पहचान प्रायः समुदाय को नहीं होती है।
इसका अहसास कराने के लिए उचित सामुदायिक नेतृत्व महत्वपूर्ण होता है। एक नेता पहल करके समुदाय के सभी सदस्यों को साथ लेकर कठिन से कठिन समस्या पर विजय प्राप्त कर लेता है।