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35 (Gound pariwar) गोंड़ परिवार की कहानी साहब सिंह भलावी की जुवानी

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35 (Gound pariwar) सबका साथ, सबका विश्वास-आजीविका संग सतत् विकास सिवनी जिले के छपारा विकास खण्ड के सोठावाड़ी गाँव में 35 गोंड़ परिवार निवास करते हैं। सिंचाई की सुविधाओं के अभाव में यहाँ खेती लाभदायक नहीं है। जिससे खेती करके वे अधिक से अधिक उपज निकाला करते है।

गरीब होने के नाते ये लोग खेती करके आपने जीवन यापन करते है खेती इनकी जीविका का प्रमुख संसाधन है खेती तभी संभव है जब सिंचाई के सम्पूर्ण साधन पर्याप्त मात्रा उपस्थित हो।

इस कारण आजीविका के लिए लघु वनोपज पर निर्भरता बहुत अधिक है। अचार के पेड़ (जिससे चिरौंजी निकलती है) पर्याप्त मात्रा में होने के कारण ये ग्रामवासियों की आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है।

गर्मी की खरी धुप में ये सभी लोग अचार तोड़ने के लिए जाते है फिर उसे तोड़ कर ग़म में सुखा लेते है सुखाने के पश्चात उनमें से चिरौंजी निकल कर बड़े दामों में बेचते है जससे उनका जीवनयापन चलता रहता था।

गरीबी के कारण व्यापारियों के कर्ज में दबे ग्रामवासी गर्मी के मौसम में एकत्रित की गई अपनी चिरौंजी व्यापारियों को औने-पौने दाम में बेचने के लिए मजबूर थे। क्योंकि उस समय इन लोगों के पास गरीबी हटाने का कोई और दूसरा रास्ता नहीं था।

जिसके कारण उनकी आमदनी बहुत कम थी। व्यापारियों का कर्ज उतारने के चक्कर में ग्रामवासी अचार को पकने के पहले ही तोड़कर बेचने के कुचक्र में फँसे थे। अधिक से अधिक अचार की गुठली इकट्ठा करने के लिए कई बार वे वृक्षों की शाखाएँ भी काट दिया करते थे।

गरीब होने के कारण वे सब यह सोचा करते थे की यदि हम अधिक अचार तोड़ कर अधिक गुठलियाँ एकत्रित करते हे तो हमें अधिक दाम मिलेंगें और हम आवश्यकता वस्तुओं को की पूर्ति कर सकेंगें।

इससे वृक्षों की कटाई होने के कारण अचार के वृक्षों में कमी आने लगी। सन् 2002-03 में सोठावाड़ी गाँव के साहब सिंह भलावी के नेतृत्व में वन विभाग के सहयोग से गाँववालों ने तय किया कि कच्चे अचार तोड़ने से जो नुकसान होता है, उससे बचने के लिए अब अचार पकने पर ही तोड़ेंगे। क्योंकि

यदि हम कच्चे अचार तोड़ते हे तो व्यपारी उन्हें काम दामों में खरीदते हे और हम उन्ही को पक जाने में तोड़ेंगें तो अधिक दम में खरीदेगें जिसमें हमें अधिक मुनाफा होगा इस प्रकार वह पके अचार तोड़ने लगे।

इस बात को लेकर उन्होंने अपने आस-पास के गाँवों में भी सहमति बनाई। आस-पास के गाँव की सहमति बनने के बाद उन्होंने अचार पकने पर ही इकट्ठा करने का फैसला किया। इससे उनके अचार की गुणवत्ता बनी और इस बात से सभी लोग सहमत हो गए जिससे

आमदनी बढ़ने लगी। पहले वे केवल अचार की गुठली व्यापरियों को बेचते थे, परन्तु आमदनी बढ़ने के बाद उन्होंने अचार की गुठली से चिरौंजी निकालने की मशीन भी गाँव में लगा ली। मशीन न होने पर ये पत्थरों से चिरौंजी निकलते थे जिसमें अधिक समय बीत जाता था लेकिन मशीन लगने के बाद इन्हें आधिक आमदानी होने के साथ-साथ समय की भी बचत होने लगी।

इसके फलस्वरूप उनकी आमदनी चार-पाँच गुना बढ़ गई। साथ ही अचार पकने पर ही इकट्ठा करने के कारण कुछ बीज जमीन में पड़े रहने से अधार के नये पौधे उगने लगे। पाँच-सात वर्ष के बाद उस इलाके में अचार के नये वृक्ष तैयार हो गये।

वृक्षों को लगाने से लाभ

  • वृक्ष लगाने से पहला फायदा तो यह हुआ की वृक्षों की संख्या में वृद्धि के साथ में लोगों को अधिक से अधिक लाभ होने लगा।
  • वृक्ष लगाने से दूसरा फायदा की यहाँ के लोगों को शुद्ध हवा मिलने लगो जो हमारे लिए बहुत जरुरी है व और भी कई तरह के फ़ल-फूल मिलने लगे जो उनकी आजीविका का साधन बन गये।

अक्सर माना जाता है कि आजीविका और विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का विनाश जरूरी है। परन्तु साहब सिंह भलावी के नेतृत्व में संगठित होकर सभी गाँव वालों ने यह साबित कर दिया कि संवर्द्धन और विकास साथ-साथ हो सकता है।

इस प्रकार आजीविका के साथ-साथ सतत् विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस प्रकार उन्होंने कर दिखाया की परिस्थिति कितनी भी कमजोर क्यों न हो यदि हम ठान ले तो हर परिस्थिति में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

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