भारतीय सभ्यता का इतिहास बहुत ही प्राचीन है साथ ही भारतीय दर्शन में महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा का महत्त्व (Mahatma Gandhi Importance of truth and non-violence in Indian philosophy)। ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में भारतीयों की प्राचीनकालीन प्रगति के चिन्ह मिलते है।
दर्शन ओर धर्म के क्षेत्र में तो प्राचीन काल में इनका पूर्ण विकास हो चुका था। पारम्परिक भारतीय चिन्तन में सत्य एवं अहिंसा विषयक चिन्तन भारतीय दर्शन में महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा का महत्त्व अधिक भारतीय दर्शनों में देखने को मिलता हैं (Mahatma Gandhi Importance of truth and non-violence in Indian philosophy)।
यूरोपीय दर्शन की प्रायः सभी समस्याओं पर भारतीय मनोविशेषज्ञ ने चिन्तन किया है। दार्शनिक समस्याओं का संगत भाग जिज्ञासा है। ओर चूंकि सभी देश और काल का मनुष्य मूलतः एक है। अतः समान समस्याऐं ही सामान्यतः उत्पन्न होती हैं उन समस्याओं का समाधान भी विरोधात्मक नहीं होता केवल दृष्टिकोण का अंतर रहता है मानव दृष्टिकोण देश की परम्पना पर निर्भर रहता है।
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जिसका संबंध तत्कालीन भौगोलिक तथा ऐतिहासिक तथ्यों से है इन्हीं वजहों से आंतरिक समानता रहने पर भी दार्शनिक विचारों में वाध्य असमानता दिखाई दी है।
भारतीय नीतिशास्त्र की पहली विशेषता यह है कि यह प्राचीनतम नीति शास्त्रीय विधा है। हिन्दू धर्मशास्त्र तथा मीमांसा दर्शन के नैतिक विचार नैतिक दर्शन के व्यवस्थित विवरण प्रस्तुत करते हैं। उन विचारों की जड़े वैदिक विचारों में है। वेद मात्र एक सर्वव्यापी नैतिक नियम की चर्चा नहीं करता अपितु कर्तव्यों की सूची भी प्रस्तुत करता है।
भारतीय दर्शन में महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा का महत्त्व
जिसमें अहिंसा तथा सत्य को प्राथमिकता दी गई है। दोनों को सर्वोच्च सदगुण विचारों गया है। वेद के काल के विषय में ठीक-ठीक जानकारी नहीं है पर यह निर्विवाद है कि संस्कृति के इतिहास में से प्राचीनतम विचार है अतः उन पर आधारित भारतीय नीतिशास्त्र प्राचीनतम है इसकी प्राचीनतम के कारण इनमें कुछ अस्पष्टता तथा
कुछ असंगति अवश्य मिलती है। पर धीरे-धीरे व्यावहारिक जीवन में उनकी जकड मजबूत होती गई और वे भारतीय जीवन के अंग हो गए हैं।
गांधी जी का अहिंसा पर आग्रह भारतीय दर्शन के संदर्भ में कोई नई बात नहीं है। भारत में हिन्दू-दर्शन में ही नहीं बल्कि जैन और बौद्ध दर्शनों में भी अपने नीति-चिंतन में अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया है। हिन्दू दर्शन में अहिंसा शब्द छांदोग्य उपनिषद के समय से प्रतिष्ठित है।
महाभारत की सूक्ति अहिंसा परमो धर्म सुविख्यात है। बौद्ध दर्शन के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ प्रशस्तपद में अहिंसा न केवल हिंसा-मात की समाप्ति है। प्रत्युत समान्त प्राणियों को हानि न पहुंचाने का एक संकल्प भी है। भूतानाम अनमिद्रोह संकल्पः। जैन धर्म में तो पचव्रतो में सर्वप्रथम व्रत अहिंसा का ही है।
Mahatma Gandhi Importance of truth and non-violence in Indian philosophy
भारतीय नैतिक प्रत्ययो में अहिंसा के प्रत्यय पर अधिकतम बल दिया गया है। जैन तथा बौद्ध नीति का आधार ही अहिंसा हो जिसको कि महात्मा गांधी ने अपने नीति शास्त्र का आधार बनाकर समस्त नैतिक प्रत्ययों को इसके ऊपर आधारित किया है।
जैन और बौद्ध धर्म के प्रभाव भारत के अहिंसा दर्शन में देखा जा सकता है। सत्य, अहिंसा, ब्रम्हाचार्य, अस्वाद, अस्तेय, अपरिहग्र अभय अस्पृश्यता निवारण, शारीरिक श्रम, निर्वधर्म समभाव, स्वदेशी आदि के विचार तथा प्रेम, दया, क्षमा, भ्रातृत्व आदि की जो धारणा है। जैन ओर बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण ही थे।
भारतीय चिन्तन की यह भी विशेषता है कि यह मात्र मानव समाज या व्यक्ति के प्रति ही अहिंसा प्रेम अथवा करूणा का पाठ नहीं पढ़ाता पर सभी प्राणियों, वनस्पति जगत पशु-जगत आदि के प्रति भी समान सम्मान की चर्चा करता है।
वर्तमान काल में जो एक समस्या बनी हुई है ओर जिसके लिए संसार के चिंतक विभिन्न उपायों की अनुशंसा करते हैं वे भारतीय आचार संहिता में वर्तमान है। भारतीय दार्शनिकों ने संपूर्ण प्राणी जगत को समान विचारा है और इसलिए सभी के प्रति समान आचरण की अनुशंसा करते हैं।
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