Thakur Kundan Singh Narayanpur
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Thakur Kundan Singh : ठाकुर कुन्दन सिंह अमर शहीद वीर

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राजा साहब ठाकुर कुन्दन सिंह और अमर शहीद लक्ष्मण सिंह : नारायणपुर स्टेट( बघराजी कुंडम जबलपुर का इतिहास) सन् 1857 की क्रांति, मदर या प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से मशहूर है। जिसमें हिन्दुस्तान के अधिकांश राजा रजवाड़े ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर विदेशी शासन का खात्मा करने के लिए अंग्रेजों को हलाकान कर नाकों दम कर रखा था।

जबलपुर के आस-पास के विद्रोही गढ़ा राजवंश के अग्रीम राजा शंकरशाह एवं नारायणपुर रियासत के राजा कुंदन सिंह के नेतृत्व में जगह जगह विद्रोह करके शासन को हिलाकर रख दिया था। राजा शंकरशाह और राजा कुंदन सिंह दोनों मुमेरे-फुफेरे भाई हैं।


उस समय का पुलिस कमान का मुख्यालय सैनिक छावनी जबलपुर में था नारायणपुर राजवंश के मराठों से अच्छे संबंध थे। ठाकुर साहब कुंदन सिंह एवं उनके अनुज, राजलक्ष्मण सिंह माता कालका के भक्त महान पराक्रमी साहसी स्वाभिमानी योद्धा थे। इनका गढ़ा में ममयारा था राजा शंकरशाह इनके ममेरे भाई थे।

अपने फुफेरे भाई के कारण ही राजा शंकर शाह की विद्रोही बनना पड़ा था

जबलपुर के वीर जवान एवं वीरांगनाएँ अंग्रेजों को कुचलने के लिए उन गोरी चमड़ी वालों के खिलाफ जोर-शोर से विद्रोह कर रहे थे। जिनके मार्गदर्शक और आश्रमदाता थे नारायणपुर के महाराज कुंवर कुंदन सिंह

झांसी की रानी से अच्छे संबंध होने से अंग्रेजों की सरकार नारायणपुर से चिड़ी हुई थी। जब विद्रोह चर्म सीमा पर होने लगा तो अंग्रेजी शासन ने नारायणपुर रियासत को हड़प लिया। इसके साथ राज परिवार को विद्रोही घोषित कर दिया कुंदन सिंह को माफीनामा लिखने एवं अंग्रेजी फौज में भर्ती होने का फरमान जारी किया गया। देशभक्त स्वाभिमानी राजा वीर कुंदन सिंह बौखला गया। और जहाँ भी गोरे अंग्रेज मिलते उन्हें वो अपनी तलवार से मौत के घाट उतारते।

माँ कालका की कृपा से ठाकुर कुंदन सिंह के घोडें की टापों की आवाज पुलिस वालों को विपरीत दिशा में सुनाई पड़ती थी।
एक बार डिप्टी कमिश्नर को वीर कुंदन सिंह ने घूंसे से मारा तो डिप्टी कमिश्नर के मुख से खून बहने लगा था। तब उसने ठाकुर कुंदन सिंह के पैर पकड़कर जीवन दान मांगा था।

धन्य है वह वीर सपूत कुंदनसिंह जिसने पुलिस कप्तान जैसे करिया सांप को छोड़ दिया।कमिश्वर सोनपुर जबलपुर ने घोषणा की कि कुंदन सिंह को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने या पकड़वाने वाले को जागीर प्रदान की जायेगी। परन्तु ठाकुर कुंदन सिंह की जो घोड़ी थी उसकी टापों की आवाज विपरीत दिशा में सुनाई पड़ती थी इसलिए उन्हें पकड़ना नामुनकिन था। माँ कालिका का वरदान था कि जब तक हाथ में तलवार रहेगी तब तक कोई पर विजय प्राप्त नहीं पा सकता था।

यह जानकारी नारायणपुर के राजपुरोहित पंडित को थी वह बघराजी में रहता था। लोभ लालच में आकर उसने ठाकुर साहब को भोजन करने के लिए आमंत्रित किया।उसके बाद उसने भोजन में नींद की गोलियां मिला दी थी, भोजन के बाद राजा कुंदन सिंह मस्त गहरी नींद में सो गये। उस समय का पड़रिया थाना एवं मझंगमा थाना में खबर भेजकर पुलिस पलटन बुलवाकर घेर लिया गया ठाकुर साहब की तलवार एवं घोड़ा अंग्रेजी पुलिस ने जप्त कर ली।

तब ठाकुर साहब को नींद में ही कैद कर लिया गया था। जागने पर अपने को गिरफ्तार कर एवं सामने कप्तान साहब को खड़ा पाकर ठाकुर साहब साहब हंस रहे थे। तब कप्तान ने कहा कि ठाकुर क्या चाहते हो तब ठाकुर साहब ने उससे अपनी तलवार और थेडी मांगी। कप्तान ने कहा की नहीं ,अगर जीना है तो सेना में भर्ती होना पड़ेगा तलवार और घोड़ी कभी नहीं मिलेगी माफी नामा लिखना होगा। तुम नारायणपुर के राजा नहीं हमारे गुलाम हो। अब तुम हमे रोजाना सैल्यूट किया करोगे। बोलो मंजूर है ऐसे बीर बहादुर की हमें आवश्यकता है।

तब कुंदन सिंह के मुँह से वचन निकले, हमें मरना मंजूर, गुलामी नहीं। हम स्वाभिमानी ठाकुर राजगोंड जाति के है, कोई कुलशीन, कमीने ,लोभील ,लालची, देश द्रोही, गददार नहीं हमारे बाद हमारे जैसे सैकड़ों कुंदन सिंह पैदा हो चुके होंगे ।


तब कप्तान के आदेशानुसार इतनी क्रूर सजा दी गई कि जिससे दूसरा कुंदन सिंह बनने का कोई साहस न कर सकें। इन्हें हजारों कील वालें लकड़ी के पटिये पर घीस-घीस कर मारा जाय। ठाकुर साहब ये यातनाएं सहकर माँ कालका की जय भारत माता की जय बोलते रहे पर ,माफ़ी नहीं मांगी धन्य है देश के वीर सपूत हमे आप पर नाज है।

कुंदन सिंह का विक्षत शव और मांस के टुकड़े को नारायणपुर के छोटे राजा लक्ष्मण सिंह से कप्तान ने स्वयं भेंट कर कहा कि अब लक्ष्मणसिंह तुम राजा नहीं रहे हमारे गुलाम हो तो अपने भाई का क्रिया कर्म करों। तब लक्ष्मण सिंह ने प्रतिज्ञा की जहां तक भाई का बदला नहीं लूंगा चैन की सांस नहीं लूंगा। और ठाकुर लक्ष्मण सिंह ने रातों रात सात पुलिस थानों को जला दिये। शासन की भारी जनधन हानि हुई।

स्वतंत्रता के दीवानों के हौंसला बलंद थे आखिर में ठाकुर लक्ष्मण सिंह पकड़े गये। उन्हें कुदद्वारा में फंसी दी गई पूरा राज परिवार तहस नहस हो गया। नारायणपुर उजड़ गया लोग इधर उधर भाग गये राज परिवार के कर्मचारी, जहां तहां मारे गये। ठाकुरों के बलिदान के कारण ही बघराजी में अठारह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए है।

कुंदन सिंह के बलिदान स्थल पर बघराजी का विश्राम गृह एवं लक्ष्मणसिंह के बलिदान स्थल पर कुन्दवारा का वन विश्राम है जो उन वीरों के बलिदान देने देने वाले राजों की महान वीरों की गौरवगाथा गा रहा है।

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मैं ठाकुर आकाश सिंह अपने आप को बहुत ही गर्वित मह्सूश करता हूँ की मैं राजा साहब ठाकुर कुंदन सिंह का वंशज हूँ। और मैंने उनके वंश में जन्म लिया। यह मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है।

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