Raja Shankar Shah Kuvar Raghunath Shah
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1857 की क्रांति के गौंड साम्राज्य के महानायक राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह की बलिदान गाथा

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1857 की क्रांति के गौंड साम्राज्य के महानायक राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह की बलिदान गाथा। भारत देश को आज़ाद हुए 75 वर्ष बीत चुकें हैं। भारत देश सोने की चिड़िया कहा जाता था। इस सोने की चिड़िया को लूटने और राज करने के इरादों से बहुत से बाहरी आक्रमण कारियों ने इस पर हमला किया और अपना शासन भी चलाया।

इसी प्रकार अंग्रेजो ने भारत में 200 सालों तक शासन किया और सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारतदेश को लगातार लूटते रहे। अंग्रेजों ने भारत के राज्यों के शासन को अपने आधीन किया। अंग्रेजों द्वारा भारतवर्ष में बहुत लूटपाट की गई। यहाँ की प्रजा पर बहुत अत्याचार किये।

लेकिन इस भारतवर्ष की मिट्टी ने हमेशा ऐसे सपूतों ने जनम दिया है। जिन्होंने अपने शौर्य और बलिदान से इस भारत माता के आंचल को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद कराने में अपनी अहम् भूमिका अदा की। भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए बहुत सारे क्रांतिकारियों ने अपना सर्वोच्च देश के लिये न्यौछावर कर दिया।

veer yodha raghunath shah
1857 ke veer nayak Raja Shankar Shah

1857 की क्रांति के गौंड साम्राज्य के महानायक राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह की बलिदान गाथा

राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने सन 1857 की क्रांति में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गौंड राजवंश के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह ने अपने देशप्रेम के खातिर अपने प्राणों की हँसते-हँसते आहुति दे। हर वर्ष 18 सितम्बर को उनके बलिदान दिवस के रूप में जाना जाता है।

1857 की क्रांति के महानायक क्रांतिवीर गोंडवाना साम्राज्य के महाराज शंकर शाह व कुंवर रघुनाथ शाह के 165वें बलिदान दिवस पर इनके द्वारा मातृभूमि के आत्मसम्मान के लिए दिए गये बलिदान को और इस गौरवशाली इतिहास को हमेशा याद रखा जाएगा।

Raja Shankar Shah & Raghunath Shah Statue
Gound Samrajy ke Raja

राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह

राजा शंकर शाह का सम्बन्ध उस वंश से था जिसमे महान राजगौंड शासक संग्रामसिंह, वीरांगना रानी दुर्गावती जैसे मातृभूमि के स्वाभिमान के खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। वीरांगना रानी दुर्गावती ने मुग़ल शासक अकबर को कड़ी टक्कर दी। रानी के वीरगति प्राप्त होने पर सम्पूर्ण गौंड साम्राज्य को उसने अपने अधीन कर राजा चन्द्र सिंह को जोकि दलपत शाह के भाई थे उनको राजा बना दिया। राजा चन्द्र सिंह की 11वीं में राजा सुमेर सिंह हुए। राजा शंकर शाह, राजा सुमेर सिंह के पुत्र थे। राजा सुमेर सिंह के मृत्युउपरांत, गढ़ा पुरवा का राजा शंकर शाह ही थे।

अंग्रेजों द्वारा देश के लोगों पर अत्याचार किये जाने की सीमा बढ़ती ही जा रही थी। तव अपने मातृभूमि और अपनी प्रजा को इनके अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए राजा शंकर शाह और इनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह ने विद्रोह का बुगल फूंक दिया। उस समय अंग्रेजो की 52वीं रेजिमेंट का कमिश्नर ई किलर्क इनकी प्रजा पर बहुत अत्यचार कर रहा था।

राजा शंकर शाह और कुवर रघुनाथ शाह ने जब विद्रोह का बुगल फूंका था तब राजा जी की उम्र 70 वर्ष थी। क्रांति के लिए एक नेता चुना गया। राजा शंकर शाह के की अध्यक्षता में गढ़ा पुरवा में एक बैठक हुई जिसमे रानी अवंतीबाई लोधी रानी, आसपास के जमीदार, नारायणपुर स्टेट के राजा ठाकुर कुंदन सिंह शामिल थे।

इन क्षेत्रों में प्रचार के लिए 2 काली चूडियाँ, क्रांति का आमंत्रण पत्र प्रसाद की पुडिया बनाकर बांटी गई। इस आमंत्रण पत्र में कविता के रूप में यह सन्देश दिया गया की “अंग्रेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो, या चूड़िया पहनकर बैठो”। जिसने इस प्रसाद की पुड़िया को स्वीकार किया उसने अंग्रजों के विरुद्ध क्रांति को स्वीकार कर लिया।

राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह एक कुशल योद्धा के साथ साथ एक कवि भी थे। वह अपनी वीर रस से ओत-प्रोत कविताओं के मध्यम से लोगों में क्रांति का बीज बोते थे। उस समय जबलपुर में अंग्रेजों की 52 रेजिमेंट तैनात थी राजा शंकर शाह , जबलपुर की अंग्रेज छावनी में तैनात अंग्रेजों को भारतीय सेनिकों की मदद से भगाना चाहते थे। लेकिन आपने सुना ही होगा की हमारे देश को बर्बाद करने के पीछे हमारे देश में बसे जयचंदों ने ही बर्बाद किया है।


कुछ इसी प्रकार राजा शंकर शाह के महल के कुछ लोग महल की गोपनीय सूचना अंग्रेजों की छवनी तक पहुंचा रहे थे। जिस कारण से उनके भेद डिप्टी कमिश्नर ने जान लिए और उसने हवेली पर पहले ही आक्रमण कर दिया इस समय राजा जी और उनके सेनिक इस आक्रमण के लिए तैयार नहीं थे। अतः 14 सितम्बर 1857 को राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को बंदी बना लिया। इस कारण से अंग्रेजों का विरोध होना और तीव्र हो गया। जिस कारण से अंग्रेजों में भीषण विरोध के भय से राजा और राजकुमार के सामने अंग्रेजो से संधि और इसाई धर्म आपनाने की शर्त रखी जिसको राजा जी ने ठुकरा दिया।

1857 ki kranti
Raja Shankar Shah Kuvar Raghunath Shah Jabalpur


राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को बंदी बनाते समय उनके महल से कुछ कविताएँ की हस्तलिपि और क्रांति का आमंत्रण पत्र मिला था। इस कारण से उनपर देशद्रोह की कविताएं लिखने, लोगों को भडकाने के आरोप में मृत्यु दंड की सजा सुनाई और 18 सितम्बर 1857 के दिन जबलपुर में उन्हें मृत्यु दंड देने के लिए ले जाया जा रहा था। इस दौरान राजा जी और राजकुमार के चहरे पर तनिक भी भय नहीं था राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को तोप के मुह से बांधकर उड़ा दिया गया। जिससे उनका शरीर तो छत विछित हो गया लेकिन अंग्रेजों ने उनका ओजस्व, उनकी कीर्ति और उनकी ओजवान छवि का बाल भी बांका नहीं कर पाए।


लोगों में इस घटना के बाद और भी 1857 की क्रांति की आग और भड़क उठी और जगह जगह विद्रोह होने लगे, मंडला, सिवनी, दमोह जगह जगह क्रांतिकारियों ने विद्रोह कर दिया, राजा शंकर शाह पर कुवर रघुनाथ शाह के बलिदान की खवर सुनकर राजा शंकर शाह के फुफेरे भाई नारायणपुर स्टेट के राजा ठाकुर कुंदन सिंह ने अंग्रेजो की कई चोंकियों को जला दिया और अंग्रेजो के खिलाफ 1857 की क्रांति के विद्रोह को और गति दे दी।


गढ़ा और वर्तमान में हमारी संस्कारधानी जबलपुर के राजा शंकर शाह और राजकुमार कुवर रघुनाथ शाह ने अपना बलिदान देकर सन 1857 की क्रांति में अहम् भूमिका निभाई. हमे गर्व है। अपने इतिहास पर , हमे गर्व है ऐसे महान वीरों के बलिदान पर जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता का अपनी मातृभूमि का अंचल सींचा हैं।

लेखक के विचार

मैं आकाश सिंह अपने आप को बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूँ कि मैं राजगौंड राजवंश और आज़ादी के महानायकों में शामिल अमर शहीद ठाकुर कुंदन सिंह का वंशज हूँ मैं अपने आप पर बहुत गर्व महसूस करता हूँ 1857 की क्रांति में संस्कारधानी जबलपुर में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह मेरे पूर्वज हैं। मैं अपने आप को गर्वित मह्सुस करता हूँ। इन महानायकों का नाम सुन शरीर में रक्त का प्रबाह तेज हो जाता है ह्रदय में वीर रस का उत्थान होता है मुझे गर्व है की मेरे पूर्वजो ने मातृभूमि के स्वाभिमान और सम्मान के लिए अपना वलिदान देकर इतिहास में उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा है।

FAQ

राजा शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह बलिदान दिवस ?

हर वर्ष 18 सितम्बर को उनके बलिदान दिवस के रूप में जाना जाता है।

गौंड राजा शंकर शाह का जन्म स्थल ?

सन 1789 में गढ़ा (पुरवा) जबलपुर मध्यप्रदेश में हुआ।

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