Samraat Prathviraj Chouhaan

महान राजपूत योद्धा पृथ्वीराज चौहान (Prathviraj Chouhan)

Rate this post

महान राजपूत योद्धा पृथ्वीराज चौहान का जन्म सन् 1162 तथा मृत्यु 1192 में हुई। पृथ्वीराज चौहान, चौहान वंश  के हिन्दू क्षत्रिय राजा थे जो उत्तरी भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर और दिल्ली पर राज्य करते थे । पृथ्वीराज का जन्म अजमेर राज्य के राजा सोमेश्वर के यहाँ हुआ । यही बालक भारत के इतिहास में क्षत्रिय वीर पृथ्वीराज चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दिल्ली के राजा अनंगपाल पृथ्वीराज चौहान के नानाजी ने उन्हें दिल्ली का उत्तराधिकरी बनाने का फैसला लिया। और अपनी पुत्री कर्पूरीदवी से स्वीकृति लेकर पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। महज 15 वर्ष कि आयु में पृथ्वीराज चौहान दिल्ली और अजमेर दोनों ही राज्यों का उत्तराधिकारी हो गए।

 राजा जयचंद ने राजकुमारी संयोगीता का स्वयंवर रखा उसमें पृथ्वीराज चौहान को आमंत्रीत नहीं किया गया । पृथ्वीराज अपने कुछ चुनिन्दा सैनिको के साथ भेष बदलकर स्वयंवर सभा में आ गए । सभा में पृथ्वीराज को न पा कर| संयोगीता का सुन्दर मुख मुरझा गया। उसकी दृष्टि द्वार पर स्थापित प्रतिमा की और उठ गई और उनकी प्रतिमा पर वरमाला डाल दी। इतने में पृथ्वीराज चौहान ने संयोगीता का हाथ थामकर उसे अपने घोड़े पर बैठाकर वहां से निकल गए।

क्रोध से तिलमिलाते हुए राजा जयचंद ने संयोगिता का अपहरण करके ले जाते पृथ्वीराज के पीछे अपने सैनिक दौड़ा दिए, मगर काफी प्रयासों के बाद भी जयचंद के सैनिक पृथ्वीराज को नहीं पकड़ पाए ।

मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी अफगानिस्तान के गोर प्रांत का शासक था, किन्तु वह अपने छोटे से शासन से संतुष्ट न था। उसकी इच्छा एक विशाल साम्रज्य स्थापित करने की थी । अतः वह भारतवर्ष की ओर बढ़ने लगा । और पंजाब प्रांत के मुलतान पर विजय प्राप्त कर ली फिर दिल्ली की ओर बढ़ चला। पृथ्वीराज और गौरी में 18 युद्ध हुए उसमें गौरी को 17 बार हार का सामना करना पड़ा।

 पृथ्वीराज की सेना में 300 हाथी और 3 लाख सैनिकों की सेना थी। हर बार गौरी को हार का सामना करना पड़ा। गौरी के गिड़गिड़ाने पर पृथ्वीराज ने उसे क्षमा कर दिया।

 लेकिन जयचंद की गद्दारी के कारण पृथ्वीराज चौहान गौरी से युद्ध हार गया ओर उसे बंदी बना लिया गया। फिर वह पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाने के बाद उसकी आँखे गरम सलाखों से फोड़ दी गई।

देशद्रोही जयचंद को उसके  स्वार्थ का पुरस्कार यह मिला की गौरी ने कन्नौज पर आक्रमण करके जयचंद को मौत के घाट उतार दिया । अब दिल्ली, अजमेर, पंजाब, कन्नोज और भारतवर्ष के कई अन्य भूभागों पर मुहम्मद गौरी का अधिकार हो गया ।

चंद्रबरदाई ने पृथ्वीराज की अपमानजनक स्थिती से छुटकारा पाने के लिए एक योजना बानाई । चंद्रबरदाई ने बात फैला दी कि पृथ्वीराज धनुष-बाण के कारनामें जानता है । गोरी ने एक कार्यक्रम का आयोजन रखा । पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चलाना जानता था।

जब एक उँचे स्थान पर बैठे गौरी ने पृथ्वीराज की कला को देखा तो उसके मुंहसे “वाह-वाह” शब्द निकला। तुरन्त चंद्रबरदाई ने तत्काल एक दोहा कहा “चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमान ! ता ऊपर सुल्लतान है, मत चूके चौहान!!!” ऐसा  सुनते ही पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी के उपर बाण चला दिया। जिससे गौरी की मृत्यु हो गई ।

इन्हें भी देखे

भारत के महान सम्राट चन्द्र गुप्त मौर्य, मौर्यवंश के संस्थापक

इतिहास का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य एक महान योद्धा सम्राट अशोक

महान राजपूत योद्धा पृथ्वीराज चौहान

महान गौंड राज्य की महारानी वीरांगना रानी दुर्गावती 

महाराणा प्रताप भारत की धरती का वीरपुत्र जिसने कभी समझौता नहीं किया 

मरतेदम तक लड़ती रही झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857

वीर योद्धा जिसने देश के लिए योगदान दिया महानायक छत्रपति शिवाजी महाराज

भारत की आजादी के इतिहास के पन्नों से गुम आदिवासियों का योगदान भागवान विरसा मुंडा

Comments are closed.

error: Content is protected !!