समता और सम्मान की मिसाल कृष्णम्मा जगनाथन की कहानी अत्यंत प्रेरणा देने वाली है, जो वैकल्पिक नोबल पुरस्कार विजेता है। मदुरै के पास वाले एक दलित परिवार की बालिका एक दिन खेत में मजदूरी करने वाली पिताजी के लिए कलेवा में माड़ (चावल से निकला) ले जा रही थी, वह जमीन पर गिर गया।
भूखे पिताजी ने बच्ची को इतना मारा कि वह घर से भाग करके गांधीग्राम की संस्थापक श्रीमति सौन्दरम् की शरण में आ गई। बड़े होने पर विनोबाजी के भूदान कार्यकर्ता जगन्नाथन से उनका अंतरजातीय विवाह हो गया।
1971 में तंजाऊर (तमिलनाडु) के कीलवेणुमणि गाँव में एक नरसंहार हुआ। इस नरसंहार में गाँव के दलित लोग इसलिए जला दिये गये, क्योंकि उन्होंने मजदूरी बढ़ाने की माँग की। कृष्णम्मा और उसके पति उस गाँव में “जोतने वालों का होगा खेत’ (LAFTE Land For the Tillers) नामक संस्थान बनाई।
निरंतर संघर्ष करते रहे तथा सामंतवाद के अत्याचारों को सहते हुये लाखों दलितों के मसीहा बन गये। उनका सपना “हर दलित परिवार को जमीन दिलाना और सम्मानजनक बसाहट (आवास) की व्यवस्था करना था।
उनके प्रयासों से आज तक दस हजार से ज्यादा दलित परिवार अपने ही खेत में काम करने लगे है तथा दो हजार से ज्यादा परिवार कृष्णम्मा के नेतृत्व में निर्मित सुविधाजनक घरों में रह रहे हैं। उनका सपना है कि अपने जीते जी 5000 से 10000 परिवारों को घर दिलाना।
परंतु जमीन कैसे दें? यह तो जमीनदारों के कब्जे में है और कुछ मंदिर मठों के अधीन है। पहले उन्होनें मंदिरों के विरुद्ध आंदोलन शुरू करके जमीन हासिल की असल में इस कला को उन्होंने बिहार में विनोबाजी के साथ भूदान आंदोलन करते समय एक मंदिर के पुजारियों द्वारा महिला विरुद्ध अत्याचारों का अंत करने के लिये किये गये अपने आंदोलन से ही सीखा। वहीं करीब दस हजार एकड़ जमीन को दलितों के लिए दिलवाया।
कृष्णम्मा और जगन्नाथन के संघर्ष के आधार पर 1990 के करीब उच्च न्यायालय ने Prawn Ponds पर रोक लगाने के आदेश निकाला। जगन्नाथन 100 साल के उम्र में 1913 में स्वर्ग सिधारे संघर्ष को कृष्णम्मा आज भी आगे बढ़ा रही हैं।