23 जून 1934 में जन्मे थंडी प्रसाद भट्ट मूलरूप से गांधीवादी और पर्यावरणवादी चिंतक हैं, जिन्होंने अपने प्रयासों से पर्यावरण संरक्षण की मिसाल कायम की। उनके साथ उनके सहयोगी सुन्दरलाल बहुगुणा ने मिलकर सरकार को पूरे देश में पर्यावरण के प्रति चेतना विकसित करने के लिए प्रेरित और अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य किया।
स्वतंत्रता के बाद भारत ने विकास का जो मॉडल अपनाया था. वह पश्चिमी देशों से लिया गया था। देश में इस बात की बहस चलती रही कि विकास का मॉडल हमारी जरूरतों के मुताबिक स्वदेशी हो या बने बनाये हल के रूप में विदेशी सरकारें इस वैचारिक संघर्ष के बीच में काम करती रहीं।
विकास के नाम पर और बड़े बांध और उद्योगों को स्थापित करने के नाम पर बड़े पैमाने पर जैव-विविधता को हानि पहुँची। बाद में सतत् विकास की अवधारणा के रूप में सभी ने इस बात को स्वीकार किया कि विकास के लिए संसाधनों का उपयोग तो हो किन्तु इस रूप में कि आने वाली पीढियों को प्राकृतिक संसाधनों के विनाश के मूल में बैठकर अपनी जीवन-यात्रा प्रारम्भ न करनी पड़े। चंडी प्रसाद भट्ट एक सम्भ्रान्त परिवार से थे।
बाद में उन्होंने अपने गाँव में रोजगार सृजन के लिए लोगों को वन उत्पादों पर आश्रित रहने के लिए वनोपज बढ़ाने का संदेश दिया। वन उत्पाद (फोरेस्ट प्रोडयूज) देने वाले वृक्षों को लगाने का उनका यह प्रयास बहुत सफल हुआ और लोगों की आय भी बढ़ी, लेकिन बड़े उद्योगों और बांधों के कारण वन सम्पदा पर असर पड़ने लगा।
भट्ट और बहुगुणा ने लोगों को संगठित किया और वृक्षों को बचाने के लिए उनसे चिपककर उनकी रक्षा करने का मूलमंत्र दिया। भारत का यह चिपको आंदोलन बहुत सफल हुआ। जिसने पूरे देश में विद्वानों, प्रशासकों, नीति निर्माताओं और मीडिया का ध्यान हमारे वनों के संरक्षण और जैव-विविधता के पोषण पर केन्द्रित किया।
सुन्दरलाल बहुगुणा सरकार हरकत में आयी और पर्यावरण को होनेवाली क्षति को कम करने के लिए योजनाओं में संशोधन किया गया। समाज और सरकार को सामाजिक सहभागिता से चंडी प्रसाद भट्ट और सुन्दरलाल बहुगुणा ने पर्यावरण संरक्षण की जो शिक्षा दी वह बहुत सी किताबें पढ़कर लाना मुश्किल है।
अपने अभूतपूर्व योगदान के लिए चंडी प्रसाद भट्ट को सामुदायिक नेतृत्व (कम्प्यूनिटी लीडरशिप) के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार तथा पद्मश्री, पद्मभूषण और गांधी पीस प्राइस से सम्मानित किया गया।
बड़ी बांध परियोजनाओं का विरोध कर उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को सबके सामने रखा और समाज और सरकार को इस दिशा में और अधिक संवेदनशीलता और व्यापकता से विचार और कार्य करने का संदेश दिया।