स्थानीय संघर्षो से बनता है विश्वस्तरीय अभियान कैलाश सत्यार्थी Kailash Satyarthi मध्यप्रदेश के विकास के मार्ग में अनेक चुनौतियाँ है जिसमें से एक बाल श्रम भी है। जिसके शिकार मासूम बच्चे स्तरीय जीवन से तो दचित होते ही हैं. पढ़ने लिखने का अधिकार खोकर भविष्य के अवसर भी गवाँ देते हैं।
बाल श्रम के खिलाफ आवाज उठाने वाले कई स्वयंसेवी संस्थानों के संयुक्त नेतृत्व के कारण वैश्विक स्तर पर जागृति आई है और इस अभियान का प्रतीक मध्यप्रदेश बन गया है।
मध्यप्रदेश में जन्म कैलाश सत्यार्थी को बाल श्रम के विरुद्ध सम्पूर्ण विश्व में चेतना जागृत करने और निर्णायक अभियानों का नेतृत्व कर अतुलनीय योगदान देने के लिए (2014 के नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
बाल श्रम के विरूद्ध में आवाज
बाल श्रम के विरूद्ध में आवाज उठाने वाले और बाल श्रम के के खिलाफ ढाई दशक से काम कर रहे कैलाश सत्यार्थी नोबेल पाने वाले नौवें भारतीय हैं।
सत्यार्थी के प्रयत्नों से करीब 80,000 बच्चों को बंधुआ मजदूर की स्थिति से मुक्ति प्राप्त हुई और उनके विकास के लिए वैकल्पिक व्यवस्थायें बनी।
बाल श्रमिकः बदहाल जिन्दगी वैश्विक स्तर पर जागृति लाने के लिए कैलाश सत्यार्थी ने कई कदम उठाए
- उन्होंने ‘बाल श्रम के विरूद्ध वैश्विक पदयात्रा (Global March Against Child Labour) का आयोजन किया।
- सत्यार्थी इंटरनेशनल सेंटर ऑन चाइल्ड लेबर एंड एजुकेशन से भी जुड़े हैं। यह संगठन कई समाजिक संगठनों, अध्यापकों और ट्रेड यूनियनों का एक समूह है, जो शिक्षा के प्रसार के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलता है।
- कैलाश ने रंगमाकी की स्थापना भी की है, जिसे ‘गुडवीव’ (Good Weave) के नाम से भी जाना जाता है।
- रगमार्क ने यूरोप और अमेरिका में 1980 और 1990 के दशक में एक जागरुकता अभियान चलाया था।
- जिसका लक्ष्य उन उत्पादों के उपभोग को हतोत्साहित करना था, जिसे निर्मित करने में बाल श्रम का इस्तेमाल किया जाता है।
- सत्यार्थी यूनेस्को की उस समिति का भी हिस्सा रहे हैं, जिसे सभी को शिक्षा के अधिकार की देखरेख के लिए बनाया गया। वह ग्लोबल पार्टनर फॉर एजुकेशन (Global Partner For Education) के सदस्य भी हैं।
- कैलाश सत्यार्थी का कई अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों के निर्माण में भी योगदान है।
- सत्यार्थी के प्रयत्नों से करीब 80,000 बच्चों को बंधुआ मजदूर की स्थिति से मुक्ति प्राप्त हुई और उनके विकास के लिए वैकल्पिक व्यवस्थायें बनी।
- वैश्विक स्तर पर जागृति लाने के लिए कैलाश सत्यार्थी ने कई कदम उठाए
- उन्होंने ‘बाल श्रम के विरूद्ध वैश्विक पदयात्रा (Global March Against Child Labour) का आयोजन किया।
- सत्यार्थी इंटरनेशनल सेंटर ऑन चाइल्ड लेबर एंड एजुकेशन से भी जुड़े हैं। यह संगठन कई समाजिक संगठनों, अध्यापकों और ट्रेड यूनियनों का एक समूह है, जो शिक्षा के प्रसार के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलता है।
- कैलाश ने रंगमाकी की स्थापना भी की है, जिसे ‘गुडवीव’ (Good Weave) के नाम से भी जाना जाता है। रगमार्क ने यूरोप और अमेरिका में 1980 और 1990 के दशक में एक जागरुकता अभियान चलाया था। जिसका लक्ष्य उन उत्पादों के उपभोग को हतोत्साहित करना था, जिसे निर्मित करने में बाल श्रम का इस्तेमाल किया जाता है।
- सत्यार्थी यूनेस्को की उस समिति का भी हिस्सा रहे हैं, जिसे सभी को शिक्षा के अधिकार की देखरेख के लिए बनाया गया। वह ग्लोबल पार्टनर फॉर एजुकेशन (Global Partner For Education) के सदस्य भी हैं।
कैलाश सत्यार्थी का कई अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों के निर्माण में भी योगदान है।
इन उदाहरणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि समाज की समस्याओं के एक से ज्यादा पक्ष या आयाम हो सकते हैं (जैसे आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, नैतिक आदि)।
कुछ नेता ऐसे उभरते हैं, जो इन सबको एक साथ लेकर चलते हैं, जैसे गांधीजी और कुछ ऐसे भी हैं जो किसी एक आयाम पर अपनी सारी ऊर्जा का विनियोग करते हैं जैसे- कैलास सत्यार्थी।
एकांगी हो या सर्वांगीण अभियान तभी सफल होता है, जब हजारों क्षेत्रीय नेताओं के प्रयत्न से जमीनी स्तर पर परिवर्तन का लक्ष्य हासिल हो।
इस इकाई में हमने मध्य प्रदेश के स्थानीय प्रेरक नेतृत्व से लेकर कैलास सत्यार्थी के अन्तर्राष्ट्रीय अभियानों की सफल झांकी को आपके सामने इस उद्देश्य से प्रस्तुत किया कि आप समझ सके कि दृढ़ इच्छाशक्ति से संघर्ष के लिए उठाया गया कदम सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
जरूरत होती है समुदाय में एक नेतृत्व के उभरने की और उसके द्वारा लोगों को साथ लेकर मंजिल तक पहुंचने की। विश्वास है कि इन सच्चे और प्रभावी प्रसंगों से प्रेरित होकर आप अपने क्षेत्र की दशा और दिशा बदलने का संकल्प लेंगे।
मध्यप्रदेश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने वाले नेतृत्वकर्ताओं में से कुछ के बारे में।
विकास के लिए सभी नेतृत्वकर्ताओं ने अलग-अलग आयामों का चयन किया। उदाहरण के लिए सुरेन्द्र सिंह चौहान ने शिक्षा, स्वच्छता एवं हरियाली पर जोर दिया। तो अन्य ने किन्हीं दूसरे आयामों पर।
सभी नेताओं ने स्थिति में बदलाव के लिए नए रास्ते की खोज की, जो उस समय तो प्रचलित नहीं था पर संभव था। इसे नवाचार कहते हैं।
इन सामुदायिक नेताओं ने आसपास की जनता से जुड़कर उनको साथ लेकर कार्य किये।
•मने यह भी जाना कि सामाजिक नेताओं को कभी कभी छोटे- छोटे भौगोलिक क्षेत्रों में छोटे-छोटे समूहों के बीच काम शुरू करना पड़ता है। इस कारण समस्याओं को समझना, नवाचारों को ढूँढना तथा स्थानीय लोक-नेतृत्व को चिन्हित करना आसान हो जाता है। ऐसे प्रयोगों को दूसरे जगहों पर दोहराना भी आसान हो जाता है।
जब कई जगहों पर यह परिवर्तन का कार्य शुरू होता है, तो वह एक अभियान का रूप लेता है। अभियान का जो नेता है. उसकी तैयारी निचले स्तर पर होती है और अंतिम सफलता सैकड़ों स्थानीय नेताओं
एवं केन्द्रीय नेता के सामन्जस्य के द्वारा ही प्राप्त होती है। इस सिद्धांत को कैलाश सत्यार्थी और मलाला के प्रेरक प्रसंगों से आसानी से समझा जा सकता है।