veer yodha raghunath shah

राजा शंकर शाह से जुडी इतिहासिक जानकारियां

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गौंड राजा सुमेर शाह की रानी ने 1789 में शंकर शाह को जन्म दिया। उस समय राजा सुमेर सिंह को मराठों ने बंदी बनाकर सागर के किले में कैद कर रखा था। रानी बेटे शंकर शाह को साथ लेकर राजधानी गढ़ा पुरवा में आकर रहने लगी थीं।
राजा शंकर शाह जंगल में बांस को छीलकर नुकीले बाण तैयार करने का काम सिखने लगे। शंकर शाह देख आसपास के गोंड, भील उअर गौंटिया जाती के बालक भी उनके साथ जुड़ गए। शंकर शाह और उनके मित्रगण धनुषबाण से वे निशानेबाजी का अभ्यास करने लगे। इसके बाद थोड़े ही दिनों में उनकी एक मित्र मंडली तैयार हो गई, जिसे गोंटिया दल का नाम से जाने जाना लगा।

वर्ष 1800 में युवराज पद पर अभिषेक

वर्ष 1800 ई के आसपास मराठों ने सुमेर शाह को कैद से मुक्त कर दिया। सुमेर शाह भी परिवार के साथ पुरवा में रहने लगे। 1800 ई में पुरवा(जबलपुर) स्थित हवेली में 16 वर्ष की उम्र में शंकर शाह को युवराज बनाया गया। शंकर शाह गुरिल्ला युद्ध के जरिए मराठा सैनिकों पर हमले भी करने लगे।

पिता के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शंकर शाह राजा बने, हालांकि अब शंकर शाह के पास राज्य के नाम पर कुछ नहीं था। लेकिन वह अपने गोंटिया दल के माध्यम से छापामार युद्ध जारी रखे हुए थे। 20 वर्ष की उम्र में उनकी शादी युद्धकला में निपुण फूलकुंवरि से हुई। विवाह के दो साल बाद कुंवर रघुनाथ शाह का जन्म हुआ। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह अपनी कुलदेवी माँ शारदा पर अटूट विश्वास था। हर अच्छे कार्य को करने से पूर्व अपनी कुलदेवी माता शारदा को स्मरण करते थे।

राजा शंकर शाह ने मराठों से अपना राज्य पाने के लिए पिंडारी सरदार अमीर खां से मदद मांगी, यहाँ पर पिंडारियों ने राजा शंकर शाह के साथ दोहरी चाल चली। 12 हजार घुड़सवारों व 7 तोपों के साथ अमीर खां और 2000 पिंडारियों के साथ सरदार शाहमत खां ने जबलपुर पर हमला बोल कर लूटपाट और हर तरह के अत्याचार किए। देवस्थानों को भी नहीं छोड़ा। इस वादाखिलाफी से दुखी होकर राजा शंकर शाह ने अपने गोंटिया दल के साथियों के साथ राज्य प्राप्त की योजना बनाई।


मराठों का शस्त्र भंडार लूट लिया

राजा शंकर शाह ने 1811 ई. में अपने गोंटिया दल के साथ नागपुर से जबलपुर भेजी गई बंदूक व कारतूस बरगी के जंगल में हमला कर छीन लिया। जिसमें 47 बंदूकें और लगभग कारतूस की 23 पेंटियां मिली। इससे राजा शंकर शाह की शक्ति और बढ़ गई। दुर्भाग्य से 20 दिसंबर 1817 को अंग्रेजों ने भोंसले से जबलपुर को छीन लिया। राजा शंकर शाह ने ब्रिगेडियर जनरल हार्डीमेन से मुलाकात कर राज्य पर अपना दावा पेश किया। लेकिन अंग्रेजों ने राजा साहब की मांग को ठुकरा दी।
इसके बाद अंग्रेजों से शुरू हो गया सत्ता संघर्ष

अंग्रेजों द्वारा मांग ठुकरा देने के बाद राजा शंकर शाह का संघर्ष अंग्रेजों के साथ शुरू हो गया। 1818 ई. के नववर्ष पर अंग्रेजों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा। गोंटिया दल के युवा वनवासी लोकनृत्य व गीतों की प्रस्तुति देने पहुंचे। उस समय अंग्रेज प्रशासनिक परषिद के अध्यक्ष निकोल और तीन अन्य सदस्यों में मेजर मेनले, कैप्टन डिस्पार्ड और ले. हार्वे थे। रघुनाव राव इंगलिया को कार्यकारी गवर्नर बनाया गया था।

पूर्व योजना के अनुसार, 24 वनवासी युवक-युवतियों ने मोहक आदिवासी नृत्य करते-करते सैनिकों की संगीनें व बंदूकें छीन कर अंग्रेजों और वहां मौजूद अतिथियों पर आक्रमण कर दिए। लगभग 20 अंग्रेजी सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। इस पर अंग्रेज सेना ने जबाबी हमला कर दिया। जिसमें 24 वनवासी युवक-युवतियों को गोलियों से भून दिया।जबलपुर की मालगोदाम यह वाही जगह जहाँ पर इसी जगह सार्वजिनक तौर पर राजा शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह को तोप से उड़ा दिए गए थे ।
इस हमले के बाद से 34 वर्षीय शंकर शाह ने बिना सामने आए अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया। 1857 के आते-आते देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह बढ़ चूका था । इसमें राजा शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह शामिल थे।

रानी लक्ष्मीबाई से ली सहायता

1857 में शंकरशाह ने बेटे के साथ मिलकर मुहर्रम के पहले दिन की संध्या पर अंग्रेज छावनी पर हमले की योजना बनाई थी। इसके लिए शंकरशाह ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से सहायता भी ली थी। रानी ने तंबरों (गिटार) में बंदूकें और मटकी में कारतूसें भरकर भेज दी थी। मेरठ की छावनी की विद्रोह के बाद जबलपुर में अंग्रेजों की 52वीं पलटन भी विद्रोह की तैयारी में थी। योजना बनायीं गई थी कि अंग्रेजों के तोपखाने पर कब्जा कर अंग्रेजी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया जाएगा।

योजना की भनक अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर को लग गई

अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ले. क्लार्क को इसकी भनक लग गई। ले. क्लार्क ने सेना के साथ रात के अंधेरे में ही चौहानी श्मशान में सो रहे दल पर आक्रमण कर दिया। सभी को गोली से भून डाला गया। फिर तेल डालकर जला दिया गया।

14 सितंबर 1857 को गिरफ्तार होने के बाद चार दिनों तक मौजूदा जबलपुर वन विभाग के इस भवन में बंदी बनाकर रखे गए थे राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह

14 सितंबर 1857 के दिन राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजा शंकरशाह की बखरी(हवेली) का घेरा डाल दिया। घर की तलाशी में कविताओं का संग्रह मिला। इसे अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह बताते हुए राजा शंकर शाह, उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह और उनके 13 विश्वस्त सहयोगियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़काने का देशद्रोह साबित करते हुए उन्हें तोप के मुंह में बांधकर उड़ा देने की सजा सुनाई गई।

12 पेज का मूल फैसला उर्दु में सुनाया गया था।

18 सितंबर 1857 को तोप के मुंह में बांधकर उड़ा दिया गया

राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को 18 सितंबर को मौजूदा मालगोदाम में उन्हें तोप के मुंह पर बांधा गया। शंकर शाह ने बांधने वालों से कहा जरा जोर से बांधो, कहीं कसर न रह जाए। फिर मातृभूमि का जयकार करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।

गिरफ्तारी के वक्त कुंवर रघुनाथ शाह ने निर्भय होकर जवाब दिया था कि हमारे देश में हमें ही गिरफ्तार करने का हुक्मनामा तुम्हारे बर्बर और जंगली होने का सबूत है। कौन कहता है, तुम लोग दुनिया की सबसे सभ्य कौम हो?
पिता-पुत्र के बलिदान के बाद रानी फूलकुंवरि ने मोर्चा संभाला। बाद में अंग्रेजों से घिर जाने के बाद उन्होंने खुद ही कटार सीने में उतार ली। अंगरक्षक को आज्ञा दी कि उनका शरीर अंग्रेजों के हाथ न लगे। अंगरक्षक ने वहीं तेल डालकर शरीर को आग लगा दी।

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