Munda jan jati Ka Itihas

आदिवासी मुंडा जनजाति का इतिहास

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आज हम लेख से मुंडा जनजाति के बारे में जानेंगे हम जानेंगे। साथ ही जानेगे की आदिवासीयों गौरव और मुंडा जनजाति का इतिहास एवं मुंडा संस्कृति, मुंडाओं के प्रमुख व्यक्ति का योगदान, मुंडो की समस्याएं और मांगे, साथ ही हम मुंडाओं का इतिहास जानेंगे और समझेगें।

मुंडा जनजाति का परिचय

मुंडा भारत का एक विशेष आदिवासी समुदाय हैं जो झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और बांग्लादेश के साथ-साथ नेपाल और भूटान में रहते हैं। यह मुंडारी भाषा बोलते हैं और मुंडा लिपि के आविष्कारक रोहिदास सिंह हैं । भारत में करीब 380000 मुंडा जनजाति के लोग निवास करते हैं।

पड़ोसी देश बांग्लादेश में 51000, नेपाल में 2000, भूटान में 2200 और अमेरिका में 500 लोग रहते हैं।

मुंडा लोग मुख्यता झारखंड के छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में रहते हैं। मुंडा शब्द का अर्थ प्रधान होता है। भारत में अनुसूचित जनजाति वर्ग में वर्गीकृत हैं । त्रिपुरा में मुंडाओं को मुरा और मध्यप्रदेश में मुउदास कहा जाता है।

जीविका के लिए यह कृषि, शिकार, मछली पालन, पशुपालन और वन संसाधनों पर निर्भर हैं । यह अकुशल मजदूरों के रूप में भी काम करते हैं। वर्तमान में यह सरकारी नौकरियां खासकर भारतीय रेलवे व निजी क्षेत्रों में जाने लगे हैं।

मुंडा आदिवासियों का इतिहास

मुंडा इतिहासकारों के मुताबिक मुंडाओं की उत्पत्ति भारत देश में ही हुई है। अगर हम मुन्डोओं लोगों की मने तो, उनके अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख शहर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में रहते थे।

बाद में गंगा और यमुना के तराई क्षेत्र में काफी लंबे समय तक रहे। केमुर के पहाड़ों पर मुंडा लोग 800 ईसा पूर्व के दौरान पहुंचे थे।
शोधकर्ता डोलटन के अनुसार “मुंडा और उराव एटा का देश में कई वर्ष रहे। यह क्षेत्र वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में पड़ता है । डोलटन डोलटन अनुसार मुंडा एटा का देश में करीब 1000 ईसा पूर्व से 800 ईसा पूर्व तक रहे।

इस समय कल में सोन की सहायक नदी कर्मनाशा नदी की तराई में मुंडों ने याको को युद्ध में हराया था। इसके बाद उन्हें बनारस की तरफ खदेड़ दिया गया। साल 1911 की मिर्जापुर गजेट्स से इसकी जानकारी मिलती है।

600 ईसा पूर्व से 400 ईसा मुंडों और उराव को रोहतक गढ़ चिरों लोगों के कारण छोड़ना पड़ा। इतिहास में मुंडों और उराव साथ-साथ रहे। मुंडा जनजाति अपनी उत्त्पति पिथोरिया गाँव को भी मानती है।

यहाँ आज भी मुंडों के राजा मदिराई मुंडा की प्रतिमा लगी है । छोटा नागपुर क्षेत्र मर मुण्डों राजों का ही अधिकार था ।

मुंडाओं की शासन प्रणाली

मुंडों की शासन प्रणाली को मुंडा मानकी प्रथा कहा जाता है । इस शासन व्यवस्था में सात पदाधिकारी होते थे, जिसमें गांव के प्रधान को मुंडा कहा जाता था इस प्रशासन लेने का अधिकार था।

दूसरा डाकुआ यूनि मुंडा का सहायक होता है। गांव को मिलाकर मुंडा के ऊपर मानकी होता है। मानकी का सहायक तहसीलदार होता है। इसके अतिरिक्त ठाकुर, दीवान, पांडे ,बरकत दास, दरोगा, लालमनकी, पनभरा, महतो और भूतखेता।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुंडा ने बढ़ चढ़कर भाग लिया बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा और ने उलगुलान आंदोलन किया था ।

सरदारी लड़ाई मुंडा आदिवासियों का एक राजनीतिक आंदोलन था जिसका उद्देश्य था झारखंड में फिर से आदिवासी राज कायम करना अब हम मुंडा दिवस की संस्कृति जानेंगे।

मुंडा आदिवासी की संस्कृति

मुंडा आदिवासी संस्कृति की सामाजिक व्यवस्था वहुत बुनियादी और सरल मुंडा लोग खेती करते हैं।

वेशभूषा

मुंडा पुरुष धोती पहनते हैं जिसे तोलोंग कहतें हैं। महिलाएं विशेष प्रकार की साड़ी पहनती है जिससे बराहतिया या बारकी लीजा कहतें हैं।

उत्सव

माघप्रप, फाग और व्हाप्रप सरुल और सोहराई उत्सव मनाते हैं।

नृत्य-संगीत

मुंडा आदिवासी नृत्य को दौरान और गीत को सुकून कहते हैं नगाड़ा पारंपरिक बजाने का यंत्र है लोटा पानी सगाई की रस्में मुंडा में शादी का उत्सव एक सप्ताह तक चलता है।

अब हम दोस्तों प्रमुख मुंडा व्यक्तियों के बारे में जानेंगे प्रमुख मुंडा व्यक्ति महाराज मदिराई मुंडा छोटा नागपुर के अंतिम मुंडा राजा थे। आज भी इनके नाम का मदुराई शहर मुजुद हैं।

महाराजा मदिराई मुंडा की प्रतिमा पिथोरिया गांव में लगी है कुरमुंडा अपनी उत्पत्ति इसी गांव से मानते हैं।
कुछ मानते मद्रा मुंडा के बाद छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में नागवंशी राजा फद्निमुकुत राय का शासन रहा।
महाराजा मथुरा मुंडा के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने महाभारत के युद्ध में हिस्सा लिया था।

बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 18 75 के दशक में पिता सुभाना मुंडा और माता कर्मी मुंडा के यहाँ झारखंड के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा साल का गांव में और फिर घोषणा एवं जिल्लकल उतार विद्यालय हुई।

बिरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर भाग लिया उन्होंने मुंडा को एकत्र कर ब्रिटिश के खिलाफ 1 अक्टूबर 1894 में अंग्रेजों को कर माफी के लिए आंदोलन किया 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग केंद्रीय कारागार में 2 साल के लिए कारावास की सजा हुई।

9891 से उन्नीस सौ के बीच मुंडावर अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उनके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था ।

अगस्त 18 से 96 में बिरसा और उनके चार सिपाहियों ने तीर कमान से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला 18 97 में तांगा नदी किनारे मुंडा होने ब्रिटिश को युद्ध में हरा दिया बाद।

बाद में कई आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार किया गया।सन 1900 डोभी पहाड़ पर बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे, तब अंग्रेजों ने कई औरतों और बच्चों को मार दिया उन्नीस सौ में चक्रधरपुर के जंगलों से बिरसा को गिरफ्तार किया गया जेल में जहर देने की वजह से वह मारे गए ।

जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी 1903 को रांची केतकवा पहन टोली में हुआ था एक भारतीय राजनीतिज्ञ लेखक और खिलाड़ी थे वह उस संविधान सभा के सदस्य थे जिसने भारतीय संघ के नए संविधान पर बहस की थी ।

वे 1928 में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के दौरान भारतीय फील्ड हॉकी टीम के कप्तान थे उनकी कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में पहला स्वर्ण पदक जीता ।

बाद में वह आदिवासियों के हितों और मध्य भारत में उनके लिए एक अलग मातृभूमि के निर्माण के लिए एक प्रचारक के रूप में उभरे भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में उन्होंने पूरे आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाया ।

1939 में आदिवासी महासभा के अध्यक्ष बने।1940 में उन्होंने अलग राज्य झारखंड बनाने की आवश्यकता पर चर्चा करें छोटा नागपुर के आदिवासी जयपाल सिंह मुंडा को मालागोम के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ महान नेता होता है।

रामदयाल मुंडा

रामदयाल मुंडा का जन्म 23 अगस्त 1939 को हुआ उन्हें आरडी मुंडा के नाम से जाना जाता है। एक भारतीय विद्वान और क्षेत्र संगीत प्रतिपादक थे। कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें 2010 के पदम श्री से सम्मानित किया गया था। वे रांची विश्वविद्यालय के कुलपति और भारतीय संसद के उच्च सदन के सदस्य थे 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला था।

तुलसी मुंडा

तुलसी मुंडा का जन्म 15 जुलाई 1947 को भारतीय राज्य उड़ीसा महुआ में उड़ीसा की सामाजिक कार्यकर्ता है। ओडिशा गरीब आदिवासी लोगों के बीच साक्षरता फैलाने में उनके योगदान के लिए उन्हें 2001 में भारत सरकार द्वारा पदम श्री से सम्मानित किया गया था। तुलसी मुंडा ने उड़ीसा के लौह अयस्क खनन क्षेत्र में स्थानीय आदिवासी आबादी के बच्चों को शिक्षित करने के लिए अनौपचारिक स्कूल खोलें उन्हें प्यार से तुलसी आया यानी तुलसी बहन कहते हैं।

मुंडा समुदाय की समस्या और मांगे मुंडा आदिवासी विकास आदि कितने साल बाद भी सही से नहीं हो पाया गांव सुविधा भी उपलब्ध नहीं है राजनीति में उचित स्थान मिले।

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