माँ नर्मदा 

गंगा जी ज्ञान की, यमुना जी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वती जी विवेक के प्रतिष्ठान के लिये संसार में आई हैं 

वैराग्य की अधिष्ठात्री 

माँ नर्मदा 

नर्मदा विश्व की अकेली ऐसी नदी है जिसकी विधिवत परिक्रमा की जाती है

नर्मदा जी में स्नान व श्रद्धा से पूजन करने का धार्मिक महत्त्व 

मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है

सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है

माँ नर्मदा का अक्षत, पुष्प, कुमकुम, हल्दी, धुप-दीप से पूजन करें

नर्मदा जल से मध्य भारत में सिचाई का प्रमुख साधन है 

धुआंधार जलप्रपात भेडाघाट जबलपुर  

सौंदर्य की नदी माँ नर्मदा    

नौकाविहार भेडाघाट जबलपुर  

माँ नर्मदा नदी पवन यात्रा  

पतित पावनी नर्मदा की विलक्षणता यह भी है कि वह दक्षिण भारत के पठार की अन्य समस्त प्रमुख नदियों के विपरीत पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है  

माँ नर्मदा नदी विहगम द्रश्य   

माँ नर्मदा नदी  की कुल लंबाई 1312 कि.मी. 

माँ नर्मदा का उद्गम म0प्र0 के अनूपपुर जिले में अमरकंटक स्थान से हुआ 

सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे

त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे

महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे

गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे

अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे

ओंकारेश्वर माँ नर्मदा 

माँ नर्मदा  मूर्तिमान स्वरूप है

माँ नर्मदा नदी के पूजन, दीपदान, स्नान एवं दर्शन मात्र से मनुष्य के पापों का नाश हो जाता है

हर हर नर्मदे